Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 13
________________ महावीर की विहार-चर्या पार्श्वनाथ के लगभग अढाई सौ वर्ष बाद विदेह की राजधानी वैशाली (बमाढ़, मुज़फ्फरपुर) के उपनगर क्षत्रियकुण्डग्राम (कुण्डग्राम अथवा कुण्डपुर, अाधुनिक बसुकुण्ड ) में महावीर का जन्म हुआ था । महावीर की माता का नाम त्रिशला और पिता का नाम सिद्धार्थ था । तीस वर्ष की अवस्था में महावीर ने दीक्षा ग्रहण की, बारह वर्ष तप किया और तीम वर्ष तक देश-देशान्तर में विहार किया । तत्पश्चात् बहत्तर वर्ष की अवस्था में ई० पू० ५२८ के लगभग मज्झिमपावा ( पावापुरी, बिहार ) में निर्वाण लाभ किया । प्रथम वर्ष महावीर वर्धमान ने मँगसिर वदी १० के दिन क्षत्रियकुण्डग्राम के बाहर ज्ञातृखण्ड नामक उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे श्रमण-दीक्षा ग्रहण की और एक मुहूर्त दिन अवशेष रहने पर कुम्मारगाम पहुँच कर वे ध्यान में अवस्थित हो गए । दूसरे दिन महावीर कोल्लाक संनिवेश पहुँचे और वहाँ से मोराग संनिवेश पहुँच कर दुइजंत नाम के तापस आश्रम में ठहरे। एक रात ठहर कर उन्होंने यहाँ से विहार किया और आठ महीने तक घूम-फिरकर वे फिर इसी स्थान में पाए । यहाँ पन्द्रह दिन रह कर महावीर अठियगाम चले गए, जहाँ उन्हें शूनपागि यक्ष ने उपमर्ग किया। यहाँ महावीर चार महीने रहे । यह उनका प्रथम चातुर्मास था। दूसरा वर्ष शरद् ऋतु आने पर महावीर यहाँ से मोराग संनिवेश गए । वहाँ से उन्होंने वाचाला की तरफ़ विहार किया । वाचाला दक्षिण और उत्तर भागों में विभक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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