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भारत का भविष्य
का गुणगान करना काफी है। अतीत का यश हम गाते रहें । अतीत के इतिहास की हम बातें करते रहें और मरते जाएं। भविष्य में हो मौत और अतीत की हो कहानी यह हमारी स्थिति हो गई है।
इसलिए दूसरी बात आपसे कहना चाहता हूं, अतीत के यथार्थ को समझ लेना जरूरी है। वह इतना सुंदर नहीं था जैसा हम सोचते हैं। लेकिन हमारे मन के अहंकार को तृप्ति मिलती है। भिखमंगे को यह मान कर बहुत आनंद मिलता है उसके बाप-दादे सम्राट थे । इससे उसके बाप दादे सम्राट थे या नहीं यह सिद्ध नहीं होता, इतना जरूर सिद्ध होता है कि वह भिखमंगा है। भिखमंगे के मन को बड़ी राहत मिलती है कि कोई फिक्र नहीं, अगर हम भीख भी मांग रहे हैं तो कोई बात नहीं, बाप-दादे सम्राट थे। बाप दादे हमारे सम्राट थे या नहीं, इससे भिखमंगेपन में कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, एक फर्क पड़ता है वह यह कि भिखमंगा अपने भिखमंगेपन में भी अकड़ जाता है।
आज हम जमीन पर भिखारी की हालत में हैं। लेकिन हमारी अकड़ का कोई हिसाब नहीं । आज सारी जमीन से हम भीख मांग रहे हैं। लेकिन हमारी अकड़ का कोई हिसाब नहीं। यह अकड़ हमें कहां ले जाएगी, कहना बहुत मुश्किल है। इस अकड़ ने हमें अतीत में भी बहुत मुसीबतों में डाला। हजार साल हम गुलाम न रहते अगर हम अकड़े हुए लोग न होते। लेकिन हम इतने अकड़े हुए लोग थे कि हमें कभी पता ही नहीं चला कि हमारे पास ताकत कितनी है। अकड़ बहुत ताकत बताती है। लेकिन जब मौका आता है तो अकड़ की असलियत खुल जाती है। हमें खयाल था हम महाशक्तिशाली हैं, वह हमारी अकड़ टूट गई। हमें खयाल था कि हम सोने की चिड़िया हैं, वह अकड़ भी हमारी टूट गई। अब भी हमको न मालूम क्या-क्या खयाल हैं—कि हम आध्यात्मिक हैं, धार्मिक हैं, यह हमारी अकड़ बहुत महंगी और खतरनाक है।
मैंने सुना है, सोमनाथ के ऊपर जब हमला हुआ, तो सोमनाथ में पांच सौ पुजारी हैं। बड़ा मंदिर था वह, , करोड़ों की संपत्ति थी उसके पास । राजस्थान के बहुत से राजपूत सरदारों ने पत्र लिखे कि हम मंदिर की रक्षा के लिए आएं। तो मंदिर के पुजारियों ने जवाब दिया, जवाब दिया कि जो भगवान सबकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा तुम करोगे! जवाब बिलकुल ठीक था, तर्कयुक्त था, समझ में पड़ता था, क्योंकि हमारी पुरानी बुद्धि से मेल खाता था। जो भगवान सबकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा तुम करोगे! राजपूत भी डर गए, उन्होंने माफी मांग ली। उन्होंने कहा कि हमसे भूल हो गई। भगवान की रक्षा हम कैसे कर सकते हैं, जो सबकी रक्षा करने वाला है। फिर वह गजनी उस मूर्ति को तोड़ सका जो सबकी रक्षा करती थी । और जब वह मूर्ति चारों खाने टूट कर पड़ गई तब हमें पता चला। लेकिन तब बहुत देर हो गई थी । अकड़ टूट जाए तब पता चले तो बहुत देर हो जाती है। वह टूटने के पहले पता चलनी चाहिए तो बदली जा सकती है।
अभी हिंदुस्तान इसी तरह की अकड़ में जी रहा है कि हम आध्यात्मिक हैं, हम फलां हैं, हम ढिकां हैं। सारी दुनिया हमसे बेहतर नैतिक हो गई। लेकिन हम अपनी अकड़ में जिंदा हैं। और हमारी बेईमानी का कोई हिसाब नहीं ।
मेरे एक मित्र हैं, प्रोफेसर हैं पटना यूनिवर्सिटी में गए हुए थे स्वीडन, जिस होटल में ठहरे हुए थे, वेजिटेरियन हैं, शाकाहारी हैं। उन्होंने सुबह ही उठ कर कहा कि मुझे दूध चाहिए और बैरा को बुला कर उन्होंने कहा कि शुद्ध दूध चाहिए, प्योर मिल्क चाहिए। उस बैरा ने कहा कि हम सुना नहीं कभी प्योर मिल्क क्या होता है? प्योर
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