Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 180
________________ भारत का भविष्य में आवश्यकताएं कम होनी चाहिए, सादगी होनी चाहिए, जीवन सीधा होना चाहिए, चीजें कम होनी चाहिए, कम से कम जरूरत में हमें पूरा करना चाहिए। इस धारणा को अगर मजबूत बना ले तो यह गरीब रहने का राम-बाण नुस्खा है। इससे फिर कभी कोई कौम संपन्न नहीं हो सकती। इसलिए अगर गांधी जी करुणा से कह रहे हैं तो मैं भी करुणा से कह रहा हूं कि वह उनकी बात बकवास है। मेरी बात समझ रहे हैं न? यानी मैं भी करुणा से ही कह रहा हूं और अगर उनकी करुणा बहुत सामयिक है तो मेरी करुणा बहुत शाश्वत है। क्योंकि पांच हजार साल में जिन लोगों ने भी करुणा के कारण हिंदुस्तान को सादा रहने की शिक्षा दी है, वे ही लोग जिम्मेवार हैं हिंदुस्तान की गरीबी के लिए। हिंदुस्तान कभी भी अमीर हो सकता था। लेकिन अमीरी के अपने सत्र हैं। अमीरी का पहला सत्र तो यह है कि जो है उससे हम संतष्ट न हों। असंतोष सदा बना रहे। जितनी हमारी आवश्यकताएं हैं, उतने पर हम ठहर न जाएं, हमारी आवश्यकताएं रोज विस्तीर्ण होती रहें। जिंदगी का जो विकास है वह जटिलता से है। तो जितना जटिल होता है उतना ही विकास होता है। बुद्ध भी करुणा कर रहे हैं, महावीर भी करुणा कर रहे हैं, गांधी जी भी करुणा कर रहे हैं, सब करुणा कर रहे हैं, यह मुल्क मरा जा रहा है। उनकी करुणा महंगी है। उनकी करुणा मेरी दृष्टि में मुल्क के हित में नहीं है, मंगलदाई नहीं है, दिखाई तो पड़ती है। दिखाई तो ऐसा पड़ता है कि ठीक है भई इतना गरीब देश है। इस मुल्क को अगर हम गरीबी में रहने की राजी करने की व्यवस्था नहीं करेंगे तो यह मुल्क तो बहुत परेशान हो जाएगा। लेकिन मेरा मानना है कि जितना यह गरीब रह कर परेशान होगा, उतना गरीबी से मुक्त होने के लिए परेशान होना, उतना खतरनाक नहीं है। इस गरीबी को कहीं तोड़ना पड़ेगा। गांधी जी को पांच हजार साल के बाद भी करुणा करनी पड़ती है, अगर आप गांधी जी को मानते हैं तो पांच हजार साल बाद भी करुणा करनी ही पड़ेगी हमको इस मुल्क में। यह व्यवस्था नहीं टूटेगी। इसलिए यह महत्वपूर्ण नहीं है। मैं गांधी जी करुणा पर कोई बात नहीं कह रहा हूं। कोई सवाल नहीं है। मैं आपको करुणा से भर कर आप बीमार हैं और आपको मिठाई दे देता हूं। मैं करुणा से ही देता हूं इससे कोई सवाल नहीं है। आप पर क्या होगा अंतिम परिणाम, सवाल यह है? अंतिम परिणाम मैं मानता हूं कि आवश्यकताएं कम करने की कल्पना, कम आवश्यकताओं में जीने की आस्था, जिंदगी को विकसित नहीं होने देती। अन्यथा हम शायद जमीन पर सबसे समृद्ध कौम हो सकते हैं, सबसे। जमीन कहीं भी इतनी समृद्ध नहीं है जितनी हमारी है। और सबसे पहले दुनिया में हमने ही मानसिक रूप से विकास किया, बाकी कौमों ने, बहुत पीछे आइ। और आज हालत उलटी हो गई। आज हालत यह है कि हम उनसे कैसे उनके कदम मिलाएं, यह सवाल है। नहीं तो दुनिया में हमसे कोई कदम नहीं मिला सकता था। गणित हमने कोई तीन हजार साल पहले खोज लिया था। विज्ञान के मूलभूत कदम हमने कोई ढाई हजार साल पहले खोज लिए थे। दुनिया की सारी महत्वपूर्ण खोज की शुरुआत हमने की लेकिन पूरा किसी और ने किया है। जब कि हम बहुत आगे थे। यानि आज फ्रायड जो कह रहा है, वह हमारा पतंजलि, हमारा बुद्ध ढाई हजार साल पहले समझता था। अभी उनके पास जो भी समझ है वह ज्यादा से ज्यादा तीन सौ साल पुरानी है। हमारे पास जो समझ है वह पांच हजार साल पुरानी है। Page 180 of 197 http://www.oshoworld.com

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