Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 195
________________ भारत का भविष्य मेरी अपनी समझ यह है कि जिंदगी के सारे सवालों का साक्षात उनको बिलकुल नहीं है। जैसे उनको यह भी पता नहीं है कि जनसंख्या कितनी इस सदी के पूरे होते-होते हो जाएगी। इस सदी के पूरे होते-होते इतनी जनसंख्या हो जाएगी कि खेती तो करना ही मुश्किल हो जाएगा। यह सवाल नहीं है कि करो या न करो। खेती के लिए जमीन नहीं बचने वाली। और इक्कीसवीं सदी के पूरे होते-होते तो अगर जनसंख्या इस मात्रा से बढ़ती है और अगर गांधीवादी बर्थ कंट्रोल के खिलाफ प्रचार किए चले जाते हैं, तो बढ़ेगी ही। कोई और रुकने का कारण नहीं है। इक्कीसवीं सदी पूरे होते सिर्फ सौ साल में एक वर्ग फीट जमीन एक आदमी के पास बचेगी। जमीन पर इतने आदमी होंगे। आदमियों का वजन जमीन से ज्यादा हो जाएगा। तो एक वर्ग फीट जमीन में अंबर चरखा चलाइएगा, खेती करिएगा, क्या करने के इरादे हैं? गांधी जी को पर्सपैक्टिव नहीं है पूरा कि यह हो क्या रहा है? कितने जोर से...चरखा एक जीवन-व्यवस्था का अंग थी, जब संख्या बिलकुल न के बराबर थी। खेती एक जीवन-व्यवस्था का अंग थी, जब जमीन बहुत थी और लोग बहुत कम थे। अब तो सिंथेटिक फूड की जरूरत पड़ेगी, गोली से ही काम चलाना है भविष्य में। सबको भोजन नहीं मिल सकेगा। भोजन का उपाय भी नहीं है। और मैं समझता हूं बेकार भी है। भोजन बहुत ही अनइकॉनामिक व्यवस्था है। तीन पाव खाओ, फिर आधा पाव पचाओ, फिर ढाई पाव निकालो, एकदम अवैज्ञानिक है। इसमें कोई मतलब नहीं है। फिर उस ढाई पाव को गांधी जी के गड्ढे में डालो, फिर उसका खाद बनाओ। यह सब पागलपन है। खाद भी मशीन बना सकती है और गोली भी मशीन बना सकती है। और मजा यह है कि जिस दिन आदमी सिंथेटिक फूड पर आ जाएगा कि एक गोली दिन में खा ले और चौबीस घंटे की उसकी वैटिलिटी, कि उसे पूरा सामान मिल जाएगा। उस दिन बीमारियां तिरोहित हो जाएंगी, नब्बे प्रतिशत बीमारियां तिरोहित हो जाएंगी। और आदमी में पहली दफा सौंदर्य का विकास होगा। और पहली दफा... और अगर गांधी उस सोसाइटी को प्रभावित कर पाते हैं तो उसी सोसाइटी को प्रभावित कर पाते हैं। हिंदुस्तान की आजादी में जितना गांधी का हाथ है उतना अंग्रेजों का भी हाथ है। उतना हिंदुस्तानियों का भी हाथ है। जो लोग आजादी की लड़ाई में लड़े उनका भी हाथ है, जो नहीं लड़े उनका भी हाथ है। यह सब टोटल फेनामिना है ये इकट्ठी घटनाएं हैं। लेकिन हमारी बुद्धि को दिक्कत होती है कि हम एक-एक आदमी को पकड़ लेते, और फिर हम उनको पूजे चले जाते। इसका मैं कोई मूल्य नहीं मानता व्यक्ति का। कोई इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। हां, जो उन्होंने किया है वह कर सके एक समाज में विशेष समाज के दायरे में, लेकिन अगर मुझसे पूछते हो तो खतरा क्या है? खतरा यह है जैसे कि इंग्लैंड था। दूसरा महायुद्ध हुआ और इंग्लैंड ने तत्काल चर्चिल को ताकत दे दी। क्योंकि इंग्लैंड को लगा कि चर्चिल आदमी युद्ध के क्षण में उपयोगी है। मुल्क लड़ रहा है, तो एक लड़ाका आदमी चाहिए ताकतवर। फौरन ताकत दे दी। चर्चिल के पहले जो बैठा था उसको ऐसे अलग कर दिया जैसे वह था ही नहीं। फिर युद्ध जीत गया, चर्चिल की जय-जयकार कर दी और युद्ध के बाद चर्चिल को चुपचाप अलग कर दिया। और ऐसी फिक्र ही नहीं की कि इस आदमी ने जिसने युद्ध जीताया। इंग्लैंड के इतिहास में चर्चिल से कीमती आदमी नहीं है, पूरे इतिहास में। लेकिन इसको वे चुपचाप लग कर सके और दूसरे आदमी को बिठा सके। Page 195 of 197 http://www.oshoworld.com

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