Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 193
________________ भारत का भविष्य प्रोसेस में रहता है। कभी ऐसा नहीं हो पाता कि वह अनुभव कर पाए कि अब मैं अमीर हो गया। क्योंकि हमेशा कोई आगे, हमेशा कोई पीछे। जिस समाज की मैं बात कर रहा हूं, वैसा समाज पहली दफा अमीर होगा, और पहला समाज पहली दफा दरिद्र ता से ही मुक्त नहीं होगा, अमीरी से भी मुक्त हो जाएगा। हमारी जो पकड़ है। एक आदमी अगर चौबीस घंटे कार में चले तो उसको सड़क पर पैदल चलने का मजे का हिसाब ही नहीं है। लेकिन आप यह मत सोचना कि कार के बगल से कीचड़ उड़ते हए जो आदमी पैदल चल रहा है उसको भी वही मजा आ रहा है। इस भ्रम में आप मत पड़ना। कार में बैठे आदमी को कभी-कभी सड़क पर चलने का बड़ा मजा आता है। और जब वह सड़क पर चलता है तब सड़क पर चलने वाले के अहंकार को तृप्ति भी मिलती है कि अच्छा, मतलब सड़क पर चलने का भी मजा है। यानी हम नाहक ही परेशान हो रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे, सड़क पर चलने का मजा सिर्फ कार उपलब्ध हो तो ही है। और गरीब होने का मजा तभी है जब कि अमीरी चखी गई हो। नंगे होने का मजा तभी है जब कि कपड़े खूब मिल चुके हों, अन्यथा नहीं है। तो मैं तो पक्ष में हूं किसी और अर्थ में। मैं इस अर्थ में पक्ष में हूं कि जिस दिन दुनिया पूरी तरफ एफ्लुएंट होगी उस दिन गरीबी अमीरी की दोनों बेवकूफियां खत्म हो जाएंगी। उस दिन पहली दफे सादगी आएगी जो भीतरी होगी। जो बाहरी नहीं होगी, उसका बाहर से कोई संबंध नहीं होगा। कौन आदमी कितने कपड़े पहनता है इससे सादगी का कोई संबंध ही नहीं है। आदमी कपड़ों को किस भांति लेता है इससे सादगी का संबंध है। सादगी जो है वह एटीटयूट है, व्यवहार नहीं है। कौन आदमी कार में बैठता है कौन नहीं बैठता, यह सवाल नहीं है। कार में बैठने को और पैदल चलने को अगर कोई आदमी एक जैसा लेने लगे। तब मैं समझूगा कि सादगी आई, नहीं तो वह आदमी जटिल है। वह आदमी जटिल है। अगर मैं कहं कि मैं रेशम के ही कपड़े पहनंगा और खादी नहीं पहन सकता, मर जाऊंगा खादी पहननी पड़ी तो, तो मैं जटिल हूं। इससे उलटा आदमी भी जटिल है, वह कहता है, मैं खादी ही पहनूंगा, नहीं तो मर जाऊंगा, रेशम छू भी नहीं सकता, यह भी जटिल है। ये दोनों आदमी जटिल हैं, यह सादा कोई नहीं है इनमें। असल में, अब तक दुनिया में सादगी आ नहीं सकी क्योंकि द्वंद्व बहुत तीव्र है गरीब और अमीर का। तो इस सादगी का मतलब होता है गरीबी की स्वीकृति, और कोई मतलब नहीं होता है। लेकिन गरीबी-अमीरी से जब दोनों से चित्त मुक्त होता है तभी सादगी आती है, वह सादगी बहुत अन्य है। उस सादगी को सादगी नहीं कहना चाहिए। सरलता है, वह सिंप्लीसिटी है आंत्रिक। उसके तो मैं पक्ष में हूं लेकिन मैं मानता हूं गांधी उस अर्थों में सरल नहीं हैं वे बहुत जटिल हैं। उनकी सारी सादगी चुनी हुई कैलकुलेटिड है, उसमें एक-एक इंच का हिसाब है। सादा आदमी हिसाब नहीं रख सकता। सादा आदमी सादा होता है। सादा होने का मतलब यह है : कैलकुलेशन कनिंगनेस है, चालाकी है। जो आदमी चौबीस घंटे कैलकुलेट कर रहा है कि इतना खाऊंगा, इतना पहनूंगा, इतने कमरे में रहूंगा, ऐसे उलूंगा, ऐसे...यह आदमी चालाक है। यह आदमी जिंदगी में गणित बिठा रहा है। सरल का मतलब ही यह है कि आदमी सरलता से जी रहा है। जो मिलता है वह खा लेता है, जहां ठहरने मिलता है सो जाता है। लेकिन यह Page 193 of 197 http://www.oshoworld.com

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