________________ भारत का भविष्य चलना आगे पड़ता है तो लाइट आगे चाहिए। पीछे को भूलते जाना पड़ता है। धूल उड़ गई रास्ता छूट गया है। वहां कोई लाइट नहीं है। वहां जो छोटे से दो लाल लाइट लगे हैं वे भी पीछे से जो आ रहे हैं उनके लिए हैं, आपके लिए नहीं हैं। एक वह मिरर लगा हुआ है रियर व्यू, वह भी उनके लिए हैं कि जो पीछे आ रहे हैं वे कहीं आपसे टकरा न जाएं। वह उनको याद रखने के लिए उनके स्मरण के लिए नहीं। लेकिन हिंदुस्तान का दिमाग जो है वह रियर व्यू मिरर है, वह बस पीछे ही देखता है, उसके पास आगे कोई दृष्टि नहीं है। कल भी गांधी पैदा करने हैं कि चूक गए। आने वाले भविष्य में भी कोई आदमी पैदा करना है कि बस खतम हो गया आपका काम। इसलिए पीछे को हमें रोज-रोज शिथिल करके छोड़ देना है। जो उसमें सार्थक है वह हमारे भीतर बच जाता है। उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। यानी मेरा मानना यह है, जो सार्थक है वह बच ही जाता है, उससे हम छूट ही नहीं सकते। जो सार्थक है वह बच ही जाता है, उसमें कहीं कुछ खोता ही नहीं। लेकिन अगर आप कोशिश करके पकड़ें तो जो व्यर्थ है वह पकड़ जाता है। इसलिए इसकी कोई, मैं कोई इसको बड़ा समझता नहीं। Page 197 of 197 http://www.oshoworld.com