Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 184
________________ भारत का भविष्य अगर हम गांधी जी की बात मानें तो मैं मानता हूं कि सबसे डिस्ट्रक्टिव योजना है, सबसे विध्वंस की । क्योंकि इसका परिणाम क्या होगा ? इसका परिणाम सिर्फ इतना होगा कि आदमी को हम एनिमल लेवल पर खड़ा कर देंगे। हां, एनिमल सादा भी है। आवश्यकताएं भी उसकी ज्यादा नहीं हैं। वह भी ठीक है। लेकिन मैं मानता हूं कि मनुष्य का जो विकास है वह मनुष्य का विकास पशु के तल से ऊपर उठने में है और पशु के तल से ऊपर उठने में जो सबसे बड़ी बात काम करती है वह है आपके पास अतिरिक्त समय ? आपके पास कितना अतिरिक्त समय है उतनी ही आपकी चेतना मुश्किल में पड़ जाती है कि अब मैं क्या करूं? तो मेरी अपनी दृष्टि यह है कि छोटी मशीनें अतिरिक्त समय नहीं ला सकती, न चरखा ला सकता है, न अंबर चरखा ला सकता है। सिर्फ वे ही मशीनें अतिरिक्त समय ला सकती हैं जो मशीनें अधिकतम लोगों का काम करने में समर्थ हैं। जैसे मेरी समझ है कि आने वाले बीस वर्षों में अमेरिका के पास दुनिया का सर्वाधिक अतिरिक्त समय होगा, आज भी है। यह जो अतिरिक्त समय अमेरिका के पास बचेगा, यह अतिरिक्त समय ही उसको चांद पर पहुंचाएगा, मंगल पर पहुंचाएगा, यह अतिरिक्त समय ही उसे ध्यान में भी लगाएगा, योग में भी लगाएगा, साहित्य, संगीत, सब तरफ लगेगा। इधर जो कठिनाई है क्या है, गांधी जी बहुत ही ज्यादा जिसको कहना चाहिए सामयिक हैं, वे देख रहे हैं समय को। वे देख रहे हैं कि कपड़ा नहीं है, साबुन नहीं है, फलां नहीं है, ढिकां नहीं है। लेकिन इसको देखने की भी उनकी समझ जो है प्रिमिटिव है । वह दो हजार साल पुरानी है। यानी अगर वह हजार साल पहले पैदा हुए होते तो वे ठीक आदमी थे। दो हजार साल बाद वे ठीक आदमी नहीं हैं। क्योंकि जिस समाज से वे यह कह रहे हैं, उस समाज के पड़ोसी समाज यंत्र का उपयोग कर रहे हैं बड़े पैमाने पर। और आदमी को मुक्त कर रहे हैं। और मेरा मानना यह है कि यंत्र ही आदमी को मुक्त करने वाला है। अगर पूर्ण यंत्र आ जाए तो आदमी पूर्ण मुक्त होता है। जब तक किसी भी आदमी को श्रम करना पड़ेगा मजबूरी में, तब तक गुलामी जारी रहेगी किसी न किसी तरह की। अगर एक बार आदमी को श्रम करने से छुटकारा हो जाए और श्रम भी स्वेच्छा हो जाए कि पूरण चंद जी को काम करना है, शौक है उनका, तो करें। नहीं करना है तो उनकी मौज है । उनको बिना काम किए भी इतना मिल सकता है। तो यह तो संभव तभी है जब हम बड़ी आटोमेटिक यंत्रों पर भरोसा करें। और बड़े मजे की बात यह है कि मैं कभी भी नहीं देख पाता कि बड़ा यंत्र आदमी को क्यों दबा लेगा? कोई यंत्र आदमी को कभी नहीं दबा सकता है। असल में, चूंकि यंत्रों का बनाने वाला आदमी है। और यंत्रों को किसी भी दिन बंद कर सकता है एक बटन को दबा कर । कोई यंत्र आदमी को कभी नहीं दबा सकता। मेरी अपनी समझ यह है कि छोटा यंत्र आदमी को ज्यादा गुलाम बनाता है। समझ लें कि मैं एक पंखा लेकर आपको हवा करने बैठूं, तो वह मुझे ज्यादा गुलाम बनाता है, बजाए एयरकंडीशनर के । एयरकंडीशनर मुझे गुलाम बना ही नहीं रहा एक अर्थों में। क्योंकि मैं चौबीस घंटे मुक्त हूं और आपको हवा मिल रही है। अगर मैं पंखा लेकर बैठूं तो मैं चौबीस घंटे आपको पंखा चलाना चाहिए। वह जो पंखा चलाने वाला आदमी मुक्त हो गया पंखा चलाने से वह उस पंखे की वजह से मुक्त हो Page 184 of 197 http://www.oshoworld.com

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