Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 190
________________ भारत का भविष्य जिन समाजों में गुलाम थे, उन समाजों ने बड़ा विकास किया। मैं गुलाम के पक्ष में नहीं हूं। लेकिन यह देखने जैसा मामला है। ताजमहल गुलामी से पैदा हुआ। पिरामिड गुलामों के इजिप्त में बने। दुनिया में जो भी विकास हुआ—जैसे एथेंस में सुकरात और प्लेटो और अरस्तू पैदा हुए, वह गुलामों का जमाना था। क्योंकि एथेंस में भी उन्होंने यह इंतजाम किया कि एक गुलामों का वर्ग ही खड़ा कर दिया जो काम ही करेगा। वह मशीन हो गया, वह आटोमेटिक मशीन है, और कुछ नहीं है। आदमी को आटोमेटिक मशीन बना दिया, वह सिर्फ काम करेगा। कुछ लोग सिर्फ सोचेंगे। लेकिन यह बड़ा दुखद है। अगर हमें दुनिया को गुलामी से मुक्त करना है तो गांधी जी की बात भूल कर मत मानना, नहीं तो गुलामी से मुक्त नहीं होगी दुनिया। अगर आप, हिंदुस्तान को अगर एक आदमी को चिंतन के लिए छोड़ना है तो दूसरे लोगों को काम करना पड़ेगा। समझ लें कि मैं अगर चिंतन के लिए मुक्त मुझे छोड़ना है, तो आप मुझसे नहीं चाहेंगे कि मैं चरखा चलाता रहूं। तो आपको चरखा चलाना पड़ेगा मेरे। लिए लेकिन यह तो बड़ी बुरी बात है। आपसे मैं गुलामी करवा रहा हूं। अंततः मैं आपसे गुलामी करवा रहा हूं, वह परोक्ष हो, प्रत्यक्ष हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे खाना चाहिए, अगर मैं खेतीबाड़ी में लग जाऊं तो ठीक है मैं खेतीबाड़ी में ही लगा रहूंगा। लेकिन तब मैं जो कर सकता हूं वह नहीं कर पाऊंगा। तो कोई मेरे लिए खेतीबाड़ी कर रहा है, यह बहुत अमानवीय है कि मैं खाऊं, कोई खेतीबाड़ी करे। तो मैं कहता हूं, मशीन खेतीबाड़ी करे। किसी को करने की जरूरत नहीं। मशीन के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होता। इसलिए मशीन गुलाम बनाई जा सकती है। मशीन के पास चूंकि कोई आत्मा नहीं है। अगर आप गांधी जी की बात मानते हैं तो गुलामी कभी खत्म नहीं होगी। सिर्फ पूर्ण मशीन ही मनुष्य को पूर्ण मुक्त कर सकती है। इसलिए मेरी लड़ाई है। वह लड़ाई गांधी जी से बहुत नहीं है। वह लड़ाई आपके दिमाग से बहुत ज्यादा है। इसमें गांधी जी, बहुत लेना-देना नहीं है मेरे लिए। आपने...में ऐसा कहा था कि मैं गांधी जी का परम भक्त हूं। नहीं, मैं काहे को कहूंगा, मैं किसी का परम भक्त नहीं हूं। गांधी जी मेरे परम भक्त नहीं, मैं उनका क्यों होने वाला हूं। यह गोरख धंधा मैं पालता नहीं। न मैं किसी का परम भक्त हूं, न कोई मेरा परम भक्त है। भक्त को ही नहीं मानता मैं। बुद्धिहीनता से भक्ति पैदा होती है। नहीं तो कोई जरूरत नहीं है। जो आपने कहा वैसा ही हेनरी फोर्ड ने कहा था, मोटर बहुत बन गई, तो उन्होंने कहा था, अब एक ऐसा समय आया है कि जहां हमारा एक फर्ज होता है कि जिनके घरों में पैसा नहीं है उनके घरों में पैसा पहंचाना चाहिए। और उसके लिए उन्होंने फिर यह सोचा कि जहां गेहूं पैदा होता है वहां ब्रेड बनाओ। तो आगे चल कर लोगों के, आपका खयाल यह है कि एक समाज ऐसा बनेगा जिसमें लोगों को मुक्ति दी जाएगी। वह भी एक संस्कृति हो सकती है कि जिसमें सब लोग कुछ काम न करें, और कल्चर ही करे, तो संस्कृति का अनुभव है कि जहां-जहां Page 190 of 197 http://www.oshoworld.com

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