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भारत का भविष्य
असल में, भारत बहुत जल्दी मान लेता है किसी की भी बात, यही खतरा हो गया। तो कम्युनिस्ट कहेंगे तो उनकी मान लेगा, सोशलिस्ट कहेंगे उनकी मान लेगा, जनसंगी कहेंगे उनकी मान लेगा, राजनीतिज्ञ कहेंगे उनकी मान लेगा, साधु कहेंगे उनकी मान लेगा। हजार तरह के मानने वाले मुल्क में इकट्ठे हो जाएंगे और सारा मुल्क टूट जाता। मानना बंद करें। अगर मुल्क की टूट बंद करनी है तो किसी को भी मानना बंद करें। सोचना शुरू करें ?
सोचना एकमात्र एकता है । अगर पूरा मुल्क सोचने लगे, तो सोचने के नियम अलग-अलग नहीं होते। अगर आप भी जोड़ें दो और दो कितने हैं तो चार होंगे और मैं भी जोडूं तो चार होंगे और तीसरा भी जोड़े तो चार होंगे। अगर हम सोचते हैं तो दो और दो चार होंगे। लेकिन मैं मानता हूं की कुरान में लिखा है कि दो और दो पांच होते हैं, मैं कुरान को मानता हूं। आप गीता को मानते हैं, उसमें लिखा है दो और दो तीन होते हैं, आपके तीन होंगे। कोई मार्क्स को मानता है उसकी किताब में लिखा है कि दो और दो दो ही होते हैं, तो वह दो ही होंगे। मानने वाले लोग मुल्क को तुड़वा रहे हैं, तोड़े हुए हैं। मुल्क को विचार करने वाले लोग चाहिए। विचार के निष्कर्ष सदा एक है। विचार युनिवर्सल है
तो मेरी बात को आप सिर्फ सोचेंगे, मानेंगे नहीं । अन्यथा मैं भी एक टुकड़े को तोड़ने वाला ही सिद्ध हो जाऊंगा, सोचें, सोचना हमें एक जगह ले आएगा। जहां हम छलांग लगाने की तैयारी कर सकते हैं।
मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, इससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
बारहवां प्रवचन
भारत का भविष्य
सादगी का कभी-कभी मजाक करते हैं तो ऐसा नहीं है कि गांधी जी ने इस देश का निरीक्षण किया, पर्यटन किया और करुणा की वजह से उन्होंने जीवन में जो जरूरी थी उतनी चीजों से चला कर वह सादगी का अंगीकार किया था, वह करुणा की वजह से किया नहीं है वह ।
करुणा की वजह से हो या न हो इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता, मेरे लिए यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि गांधी जी ने किस वजह से सादगी अख्तियार की। मेरे लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि सादगी का रुख मुल्क को गरीब बनाता है। मेरे लिए वह महत्वपूर्ण नहीं है । वह गांधी जी की व्यक्तिगत बात है कि वे करुणा से साध रहे हैं, या उनको कोई आप्सेशन है इसलिए साध रहे हैं, या दिमाग खराब है इसलिए साध रहे हैं। इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। वह गांधी जी की निजी बात है। लिए प्रयोजन जिस बात से है वह यह है कि जो मुल्क सादगी को प्रतिष्ठा देता है वह मुल्क संपन्न नहीं हो सकता । मेरे लिए जो आधार है आलोचना का वह बिलकुल दूसरा है। इससे मुझे प्रयोजन ही नहीं है। गांधी जी की करुणा हो वह उनके साथ है। लेकिन जो सवाल है वह यह है कि अगर हम एक बार किसी मुल्क
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