Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 177
________________ भारत का भविष्य आदमी कभी अनुभव नहीं कर सकता। क्योंकि वह नीग्रो की जगह कभी खड़ा नहीं हो सकता। तो वह नीग्रो बन कर निकल पड़ा। उस आदमी ने अपने संस्मरण लिखे हैं वे बड़ी हैरानी के हैं। उसने लिखे हैं कि मैं पहले तो बहत डरा आईने के सामने जाने में, फिर भी मैंने सोचा, कि रहंगा तो मैं वही सिर्फ काला हो गया है। तो जब वह आईने के सामने गया और उसने बिजली का बटन दबाया, बिजली का बटन दबाते वक्त भी उसके हाथ कंपे। जब उसने बिजली का बटन दबाया और आईने में देखा तो उसे पता चला कि यह मैं वही नहीं है, यह तो आदमी ही कोई और है। उसकी सारी आइडेंटिटी गडबड हो गई। उसका जो अपना नाम था. अपना ज्ञान था. अपनी जो समझ थी. वह सब गड़बड़ हो गई। वह एकदम से, जिसको कहना चाहिए मैलएडजेस्टमेंट हो गया, सब चीजें अस्त-व्यस्त हो गइ। वह अपने ही हाथ को अब ऐसा नहीं मान सकता कि मेरा है। अब उसे शरीर अपना बिलकुल अलग मालूम पड़ने लगा और खुद बिलकुल अलग मालूम पड़ने लगा। है तो वह गोरा आदमी, गोरे आदमी की प्रिज्युडिस और गोरे आदमी के खयाल और हो गया है नीग्रो! अगर इस आदमी की चमड़ी धीरे-धीरे-धीरे-धीरे काली पड़ती जाए और सत्तर साल लग जाएं, तो ऐसी दिक्कत नहीं आएगी। यह इंजेक्शन से बारह घंटे के भीतर संभव हो गया। इसके दो हिस्से हो गए। यह आदमी स्किजोफ्रेनिया में पड़ गया। इसका एक हिस्सा नीग्रो हो गया जो बिलकुल अलग है और एक हिस्सा अंग्रेज रह गया जो बिलकुल अलग है। अब इन दोनों के बीच कोई ताल-मेल न रहा। उसका सिर घूमने लगा। वह सड़क पर चल रहा है तो उसे पता नहीं चलता कि मैं कौन हूँ? और लोग उसकी तरफ देखते हैं तो आंखें अब वही नहीं हैं जो कल तक थीं। अब लोग उसे और तरह से देख रहे हैं। अब वह एक होटल में प्रवेश कर रहा है तो लोग उसे और तरह से देख रहे हैं। लोग उससे और तरह का व्यवहार कर रहे हैं। अब वह भीतर हंस रहा है, क्योंकि यह व्यवहार नीग्रो के साथ हो रहा है जो वह नहीं है। वह अपनी चमड़ी को भी धोता है तो उसे ऐसा लगता है वह किसी और की चमड़ी धो रहा है। यह घटना इतनी तेजी से घट गई कि इसके व्यक्तित्व में खंड हो गया। मनुष्य-जाति ने जोर से ज्ञान उत्पन्न किया है और ज्ञान एक्सिलरिटिंग है। वह रोज गति बढ़ती जाएगी। अगले दिनों में ढाई वर्ष में इतना हो जाएगा, फिर सवा वर्ष में इतना हो जाएगा, फिर महीने भर में इतना हो जाएगा। इस सदी के पूरे होते-होते आदमी अपने को बड़ी मुश्किल में पाएगा और वह यह कि वह बहुत पीछे रह गया और ज्ञान रोज बदलता जा रहा है। और उस ज्ञान के साथ नये एडजेस्टमेंट खोजने कठिन हो जाएंगे। भारत के लिए जो सबसे बड़ा सवाल है वह यह है कि सारी दुनिया ने जो ज्ञान की खोज की है और हमने तो वह खोज नहीं की। तो हम तो अपने घर में जी रहे थे। जहां बैलगाड़ियां थीं, जहां शूद्र थे, जहां हिंदू-मुस लमान थे, जहां ब्राह्मण शूद्र की छाया से बच रहा था। हम अपनी उस दुनिया में जी रहे थे। अचानक आंख खुली और हमने पाया कि जैसे एक सपना टूट गया, न यहां बैलगाड़ियां हैं! यहां ज़ेट प्लेन हैं, जो विक्षिप्त रफ्तार से चांद की तरफ जा रहे हैं। न यहां कोई ब्राह्मण है, न कोई शूद्र है। सब कुछ बदल गया है चारों तरफ। इस बदले हुए के साथ नये भारत को अपना एडजेस्टमेंट खोजना है। इस बदले हुए के साथ अपना समायोजन करना है। Page 177 of 197 http://www.oshoworld.com

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