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भारत का भविष्य
सबूत देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि परमात्मा भूल में है जो जीवन को सृजन कर रहा है। वे कहते हैं, असली समझदार तो वे हैं जो जीवन को छोड़ कर भाग रहे हैं।
जीवन को छोड़ कर नहीं भागना है, जीवन को जीना है उसकी परिपूर्णता में । और उसकी परिपूर्णता के रस से ही जो अनुभव उपलब्ध होगा, वही अनुभव प्रभु की ओर ले जाने वाला अनुभव बनता है। पीठ दिखा कर जीवन की तरफ, सूर्य की तरफ पीठ करके कोई भी प्रकाश को उपलब्ध नहीं हो सकता। इस बात की तीव्रतम घोषणा हम कर सकें मुल्क के प्राणों में, तो मुल्क में विज्ञान पैदा होगा। क्योंकि विज्ञान किसी अंतर्दृष्टि का परिणाम है। तो टेक्नालॉजी पैदा होगी। क्योंकि टेक्नालॉजी कोई ऊपर से नहीं थोपी जा सकती। इसलिए तो हम पश्चिम से जाकर सीख कर आ जाते हैं। हमारा युवक जाता है, वह टेक्नीशियन होकर आ जाता है। हमारा युवक जाता है, वह विज्ञान का एक नाटक होकर आ जाता है। लेकिन विज्ञान बुद्धि, साइंटिफिक आउट लुक पैदा नहीं होता । साइंटिफिक आउट लुक जरा भी पैदा नहीं होता। वह यूरोप से लौट आएगा, आक्सफोर्ड और क्रेमरीज से होकर लौट आएगा, और उसकी टोपी के नीचे देखो तो चोटी में राख दबी मिल जाएगी।
एक संन्यासी की किताब में पढ़ रहा था। वह वैज्ञानिक विज्ञान पढ़े हुए संन्यासी ने और उन्होंने उस किताब में यह सिद्ध करने की कोशिश की कि हिंदुस्तान में जो कुछ भी चलता है सब वैज्ञानिक है। चोटी भी वैज्ञानिक है। मैं तो बहुत हैरान हुआ कि चोटी कैसे वैज्ञानिक है ? किताब पढ़ी तो दंग रह गया कि इस बीसवीं सदी में भी कोई ये बातें लिख सकता है।
विज्ञान का स्तानक है यह आदमी । लिखा है कि चोटी वैज्ञानिक है और उदाहरण दिया है कि आपने देखा होगा कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों पर लोहे की लकड़ी लगाते हैं ताकि बिजली का असर न पड़े। हिंदुओं ने बहुत पहले यह खोज कर ली थी इसलिए चोटी को बांध कर खड़ा रखते थे। जिससे बिजली का कोई असर आदमी के ऊपर न पड़े।
चोटी वैज्ञानिक है! खड़ाऊं वैज्ञानिक है ! क्योंकि हमने बहुत पहले हमारे ऋषि-महर्षिओं ने खोज कर ली थी कि अंगूठे में एक नस होती है वह अगर दबी रहे तो आदमी ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाता है।
सारे शरीर - शास्त्र की खोज-बीन भी हो चुकी है, अंगूठे में ऐसी कोई नस नहीं है जिसके दबे रहने से आदमी ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाए। अगर ऐसी कोई नस मिल जाए तो संतति-निरोध वगैरह की कोई जरूरत न रहे। सबको खड़ाऊं पहना दी जाए और काम हल हो जाए। और खड़ाऊं में भी खतरा है, कभी खड़ाऊं उतारोगे न, कम से कम रात सोते वक्त तो खड़ाऊं उतारनी पड़ेगी। तो हम नस का कोई आपरेशन नहीं कर सकते हैं, नस को स्थायी रूप से बांध सकते हैं। लेकिन हमारी बुद्धि वैज्ञानिक नहीं हो पाती, हमारे जीवन को देखने का ढंग वैज्ञानिक नहीं हो पाता। उसका कारण है, हजारों साल से हमें श्रद्धा सिखाई गई है, बिलीफ। जहां-जहां श्रद्धा का प्रभाव है वहां-वहां विज्ञान पैदा नहीं होता। विज्ञान पैदा होता है संदेह से, डाउट से। बिलीफ से नहीं। विज्ञान का जन्म होता है संदेह से। जब हम अतीत पर संदेह करते हैं तो हम विकसित होते हैं। जो लोग पर श्रद्धा किए चले जाते हैं, वे विकसित कभी भी नहीं होते ।
अगर इस देश में टेक्नालॉजी और विज्ञान को पैदा करना है और उसके बिना हमारा कोई भविष्य नहीं सकता। तो ध्यान रहे, हमारे चिंतन की सारी प्रक्रिया के आधार बदलने होंगे । श्रद्धा की जगह संदेह को मूल्य देना होगा।
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