Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 159
________________ भारत का भविष्य इतिहास की जरूरत तो केवल उन लोगों को है जो मानते हैं कि पुराना दुबारा नहीं घटेगा, रोज सब नया होता चला जाएगा। इसलिए पुराने की स्मृति को संरक्षित रखना जरूरी है। हम तो पुराने को ही संरक्षित किए हुए हैं तो पुराने की स्मृति को संरक्षित करने की क्या जरूरत है? इसलिए हमने कभी इतिहास नहीं लिखा। और हमारे सामने भविष्य की कभी कोई दृष्टि नहीं रही, हमारे सामने अतीत ही सब कुछ रहा। भविष्य हमारे लिए अर्थहीन है। अर्थ है तो अतीत में है वह जो बीत गया। क्यों? क्योंकि जो बीत गया वही बीतता रहेगा बार-बार। भविष्य में कुछ भी नया छिपा नहीं है जो हमारे लिए प्रकट होगा। इस मानसिक व्यवस्था से हम पराने रहने की तैयारी जटाए रखे हैं। हम पराने थे लेकिन हमें पता नहीं चलता था। गरीबी भी तब पता चलती है जब हम किसी अमीरी के निकट आ जाएं, और कुरूपता का भी बोध तब होता है जब सौंदर्य पास खड़ा हो जाए, और सफेद रेखाएं काले ब्लैक-बोर्ड पर दिखाई पड़नी शुरू होती हैं। चारों तरफ सारी दुनिया नई हो गई है, सब कुछ नया हो गया है, उसके बीच हम एक म्यूजियम की भांति पुराने रह गए हैं। जहां भी आंख उठाते हैं वहां हमें फौरन पता लगता है कि हम पुराने पड़ गए हैं। अब हमारे बीच जिनकी बुद्धि शुतुरमुर्ग जैसी है, और वैसे बुद्धिमान लोग हमारे बीच बड़ी तादाद में हैं। तो हम जानते हैं कि शतरमर्ग का अपना लाजिक है, अगर दश्मन उस पर हमला कर रहा हो तो वह सिर को रेत में गडा कर खड़ा हो जाता है। जब उसका सिर रेत में गड़ जाता है तो उसे दिखाई नहीं पड़ता कि दुश्मन सामने है। और शुतुरमुर्ग का तर्क यह है कि जब दुश्मन दिखाई नहीं पड़ता तो दुश्मन है नहीं। लेकिन दुश्मन नहीं दिखाई पड़ने से मिट नहीं जाता। बल्कि दिखाई पड़ते हुए दुश्मन से तो हम सुरक्षा का उपाय कर सकते हैं, संघर्ष कर सकते हैं। न दिखाई पड़ने वाले दुश्मन के हाथ में हम निहत्थे हो जाते हैं, निशस्त्र हो जाते हैं। और दुश्मन पूरी ताकत हमारी आंख बंद होने की वजह से पा जाता है। भारत में जिन्हें हम बुद्धिमान लोग कहते हैं वे सारे बुद्धिमान शुतुरमुर्गी तर्क को विश्वास करते हैं। वे मानते हैं: देखो मत चारों तरफ, आंख बंद रखो, तो हम अपने पुराने सपनों में खोए रह सकते हैं और हम कह सकते हैं कि हम पुराने नहीं हैं। इसलिए भारत में हजारों-सैकड़ों साल तक परदेश जाने की पाबंदी रखी। दूसरे देश जाने पर हमने अपने बच्चों पर रोक लगाई। रोक इसलिए लगाई कि दूसरे देश में देख कर नये की संभावनाएं शुरू हो जाएंगी। सैकड़ों वर्षों तक हमने दूसरों के शास्त्र नहीं देखे। सैकड़ों वर्षों तक हमने दूसरों के दर्शन और दूसरों के विज्ञान पर आंख न डाली। हम शुतुरमुर्ग की तरह अपने सिर को खपा कर खड़े रहे। लेकिन अब अजीब दुश्मन से पाला पड़ा है! वह शुतुरमुर्ग की गर्दन को बाहर निकाल कर उसको दर्शन दे रहा है। और अब कोई उपाय नहीं है, हमें दर्शन करने ही पड़ेंगे। यह जो दुनिया है बहुत अर्थों में छोटी हो गई है। मार्शल मेकलुहान ने एक शब्द का उपयोग किया है वह ठीक है। उसका कहना है कि दुनिया अब एक ग्लोबल विलेज, एक जागतिक गांव हो गई है, एक छोटा गांव। इसलिए अब पड़ोसियों से बचना मुश्किल है। और चारों तरफ नई होती जिंदगी अब हमें पुराना न रहने देगी। अब दो ही उपाय हैं, या तो हम स्वीकार से और आनंद से नये होने की तैयारी में लग जाएं या हम जबरदस्ती Page 159 of 197 http://www.oshoworld.com

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