Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 168
________________ भारत का भविष्य मैं नहीं मानता, यह शास्त्र में लिखा है इसलिए इस कलियुग को आने में आसानी हो गई है। क्योंकि हमने स्वीकार कर लिया है कि कलियुग आएगा ही। अगर न आता तो शायद हम दुखी होते। हम कहते कि ऋषि-मुनि और गलत हो सकते हैं? सर्वज्ञ, जो सब जानते थे वे गलत हो सकते हैं? नहीं; इस दुनिया में कोई सब जानने वाला पैदा नहीं हुआ। और जिस कौम में सर्वज्ञ पैदा हो जाएंगे वह कौम अज्ञानी हो जाएगी। क्योंकि जानने को सदा शेष है, जानना रोज है, नई खोज रोज करनी है। एक जो बुनियादी भूल मुझे दिखाई पड़ती है पुराने भारत की, जिसकी वजह से भारत नया नहीं हो सका, वह यही है कि हम शरीर को इनकार करते हैं, भौतिकता को इनकार करते हैं, संसार को इनकार करते हैं। लेकिन ध्यान रहे, जो संसार को इनकार कर देगा वह परमात्मा तक नहीं पहुंच सकेगा। क्योंकि परमात्मा तक पहुंचने वाले सब रास्ते संसार से होकर गुजरते हैं। और जो आदमी यह कहेगा कि हम तो मंदिर के स्वर्ण-शिखरों को मानते हैं, हम नींव के गंदे पत्थरों को नहीं मानते। तो ध्यान रहे, वह स्वर्ण-शिखर रखा बैठा रहे, वे कभी मंदिर पर चढ़ेंगे न। ये बड़े मजे की बात है, जिंदगी के बड़े राज की बात है कि अगर आप चाहें तो मंदिर की नींव बना कर छोड़ सकते हैं, मंदिर के नींव के पत्थरों के लिए शिखर का होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन मंदिर का शिखर बिना नींव के पत्थर के नहीं हो सकता। ये बड़े मजे की बात है कि जिंदगी में निकृष्ट हो सकता है श्रेष्ठ के बिना, लेकिन श्रेष्ठ निकृष्ट के बिना नहीं हो सकता। असल में, सब श्रेष्ठ को निकृष्ट पर ही आधार बनाना पड़ता है। निकृष्ट का मेरे मन में अर्थ यह है कि जो श्रेष्ठ का आधार बनता हो। निकृष्ट का मेरे मन में कोई कंडेमनेटरी, कोई निंदात्मक अर्थ नहीं है। निकृष्ट का मतलब है कि जो नीचे होता है। लेकिन हर ऊंची चीज के लिए किसी को नीचे होना ही पड़ेगा। और मजे की बात यह है कि ऊंची चीज के बिना भी नीचा हो सकता है, लेकिन नीची चीज के बिना ऊंचा नहीं हो सकता। आपका शरीर बिना आत्मा के भी दिखाई पड़ जाता है, लेकिन आपकी आत्मा बिना शरीर के दिखाई नहीं पड़ती। एक आदमी मर जाता है तो हम देखते हैं कि शरीर पड़ा रह गया, आत्मा दिखाई नहीं पड़ती है। लेकिन ऐसा नहीं मामला होता है कि आत्मा खड़ी है शरीर कहां चला गया? शरीर आधार है, बुनियाद है। विज्ञान हो सकता है बिना धर्म के, लेकिन धर्म बिना विज्ञान के नहीं हो सकता। सिर्फ बातचीत हो सकती है। तो हम धर्म की बातचीत कर रहे हैं, क्योंकि आधार तो हमारे पास नहीं है, आधार हमारे पास नहीं हैं। एक आदमी का अगर पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कि वह कविता करे ही। एक आदमी का पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कि वह सितार बजाए ही। एक आदमी का पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कि भगवान की खोज करे ही। लेकिन अगर एक आदमी का पेट खाली हो तो पक्का है कि सितार न बजा सकेगा, भगवान की खोज न कर सकेगा, गीत न गा सकेगा। गीत ऊंचाई है, पेट बड़ी नीची चीज है। लेकिन जो नीचे को इनकार कर देते हैं उनकी ऊंचाइयां अपने आप नष्ट हो जाती हैं। इस देश ने नीचाई को इनकार करने की भूल की है। और हम ऊंचाई को बचाने की कोशिश कर रहे हैं पांच हजार साल से। और जिस पर वह बच सकती थी उसको इनकार किया हुआ है। शरीर के हम दुश्मन थे। बल्कि हमारे शास्त्रों में कहा हआ है कि जिसको आत्मा को पाना है उसे शरीर से लड़ना पड़ेगा। तो ठीक है, जिसको मंदिर के ऊपर स्वर्ण का शिखर चढ़ाना है उसे नींव के पत्थर उखाड़ने चाहिए। जरूर मंदिर का शिखर रख दिया Page 168 of 197 http://www.oshoworld.com

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