Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 170
________________ भारत का भविष्य हिंदुस्तान जैसा पदार्थवादी, मैटीरियलिस्ट मुल्क भी खोजना कठिन है। लेकिन हिंदुस्तान जैसी स्प्रिट और स्प्रिचुअलिटी की बात करने वाला कोई भी नहीं है जमीन पर मामला क्या है? गलती कहां हो गई है ? हमारा आदमी एकदम भौतिकवादी है । उसकी सारी चिंतना भौतिकवाद के आस-पास घूमती है । वह रात सपने भी रुपये के देखता है और तिजोरी के पास ही सोता है और ताला भी लगाता है तो दुबारा भी हिला कर देखता है कि चाबी ठीक से लग गई कि नहीं लग गई। लेकिन मंदिर जा रहा है। मेरे सामने ही एक सज्जन रहते हैं वे रोज सुबह मंदिर जाते हैं ताला लगा कर, फिर दस कदम वापस लौट कर ताले को हिला कर देखते हैं । एक दिन मैं बैठा था तो मैंने उनसे कहा कि आप यह दुबारा ताले को हिला कर क्यों देखते हैं? उन्होंने कहा कि अब आपने पूछ ही लिया, आपके संकोच की वजह से कई दफे मैं देख भी नहीं पाता । अब आपने पूछ ही लिया है तो मुझे शक हो जाता है कि पता नहीं लगा है ठीक नहीं लगा। तो मैंने कहा, सौ कदम चल कर फिर नहीं होता शक ? उन्होंने कहा, होता है, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाता कि लोग क्या कहेंगे? और मैंने कहा, जब मंदिर में भगवान के सामने खड़े होते हैं तो भगवान दिखाई पड़ता है कि ताला दिखाई पड़ता है ? उन्होंने कहा, आपको कैसे पता चल गया ? हैरानी की बात है ! जल्दी-जल्दी किसी तरह पूजा कर के भागता हूं। दिखाई तो ताला ही पड़ता है ! लेकिन मंदिर में खड़े देख कर भ्रांति हो जाएगी कि यह आदमी भगवान के सामने खड़ा है। यह आदमी पूरे वक्त तिजोरी के सामने खड़ा है। यह आदमी भगवान के सामने खड़ा नहीं हो सकता। हमारा चित्त तो है बौद्धिक, होगा ही, क्योंकि हमने भौतिक जिंदगी की मांग पूरी नहीं की। मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखाई पड़ती, स्वाभाविक है। लेकिन जब हम इसको इनकार करते हैं तब रुग्णता शुरू हो जाती है। जो आदमी भूखा है वह अगर भगवान के सामने खड़ा हो और उसे भगवान न दिखाई पड़ कर रोटी दिखाई पड़े तो इसमें बुराई क्या है? उसे रोटी दिखाई पड़ेगी। लेकिन कारण क्या है? इस आदमी ने रोटी की मांग पूरी नहीं की। भारत ने आदमी की बुनियादी जरूरतों की मांग आज तक पूरी नहीं की है। भारत आज भी बुनियादी मांगों के मामले में अत्यंत असहाय और दीन है। न हमारे पास ठीक भोजन है, न ठीक कपड़े हैं, न ठीक शरीर है, न ठीक सौंदर्य है। हमारे पास कुछ भी नहीं है, जिंदगी की जरूरी चीजें हमारे पास नहीं हैं। और तब हम जिंदगी की उन बातों की बातें कर रहे हैं जो एक अर्थ में गैर-जरूरी हैं। वह जरूरी बनती हैं जब जरूरत की सब चीजें पूरी हो जाएं। तब वह भी जरूरी बन जाती हैं किसी अशोक के लिए या किसी अकबर के लिए धर्म एक जरूरत हो जाती है। हो जानी चाहिए । अकबर के लिए धर्म एक जरूरत है, एक नीड है। लेकिन हमारे लिए नहीं हो सकती, हमारी जरूरतें कुछ और हैं। इसलिए जब हम भगवान के सामने भी जाते हैं तो कोई हाथ जोड़ कर कहता है मेरे लड़के को नौकरी लगवा दो, कोई कहता है मेरी लड़की की शादी करवा दो, कोई कहता है मेरी पत्नी की बीमारी ठीक कर दो। हम भगवान के पास भी क्या मांगने जाते हैं? बहुत बेशर्म हैं हम | जो काम हमें कर लेना चाहिए वह हम भगवान से मांगने जाते Page 170 of 197 http://www.oshoworld.com

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