Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 160
________________ भारत का भविष्य और परेशानी में नये बनाए जाएंगे। अगर हम नये बनाए गए तो वह दुखद होगा, अगर हम नये बने तो वह सुखद हो सकता I लेकिन अभी भी हम अपनी दलीलें दिए चले जाते हैं। अभी भी हम कहे चले जाते हैं कि हम जगतगुरु हैं । अभी भी हम कहे चले जाते हैं कि दुनिया हमारी तरफ देख रही है । अब भी हम कहे चले जाते हैं कि दुनिया को हमसे सीखना है, हमसे दुनिया को सीखना पड़ेगा, ये बड़ी खतरनाक बातें हैं । यह असल में दुनिया से हमें न सीखना पड़े इसकी तरकीब है। अगर दुनिया से हमें नहीं सीखना है तो हमें यह घोषणा करते ही रहनी चाहिए कि दुनिया हमारी तरफ देख रही है और दुनिया हमसे सीखने को आतुर है। अगर दुनिया से हमें नहीं सीखना है तो हमें अपने मन में यह बात मजबूती से पकड़े रखनी चाहिए कि हम जगतगुरु हैं और सारी दुनिया को ज्ञान देने का ठेका हमारा है। लेकिन ध्यान रहे, इस ठेके में हम रोज अज्ञानी होते चले जाएंगे, इस ठेके में हम रोज दीनता और दरिद्रता में गिरते चले जाएंगे। बहुत कुछ है जो भारत को सीखना पड़ेगा, बहुत कुछ है जो भारत को तोड़ना पड़ेगा और बहुत कुछ है जो नया निर्माण करना पड़ेगा। इस संबंध में दो-तीन बातें स्मरणीय हैं। अल्डुअस हक्सले ने एक शब्द का निर्माण किया है और उसे कहा है : कल्चर शॉक। असल में दूसरी संस्कृति के संपर्क में जब हम आते हैं तो एक धक्का लगता है। अपरिचित संस्कृति का धक्का! जो उस धक्के को झेल लेता है और उस धक्के का मुकाबला कर लेता है, वह सबल हो जाता है। जो उस धक्के से भाग खड़ा होता है, एस्केप कर जाता है, पीठ दिखा देता है, वह कमजोर हो जाता है। संस्कृति का धक्का तो ठीक ही है, हमें सारी विश्व-संस्कृति का धक्का झेलना पड़ रहा है। किसी एक संस्कृति से टक्कर नहीं है अब, अब सारे विश्व की आधुनिकता से हमारी प्राचीनता की टक्कर है। अगर एकाध संस्कृति से टक्कर होती तो शायद हम एस्केप कर जाते, हम आंख बंद कर लेते और देखने से इनकार कर देते। लेकिन अब सारी दुनिया से टक्कर है। और वह टक्कर ऐसी नहीं है कि बातों और विचारों की हो, वह टक्कर अब जिंदगी, पेट और रोजी-रोटी की भी है। उसे झुठलाया नहीं जा सकता। उसे इनकार भी नहीं किया जा सकता । यह जो हमारा पुरानापन है यह पहली बार कांटे की तरह चुभना शुरू हुआ है। जो हमारी जिंदगी में बूढ़ा हिस्सा है, जो पिछली पीढ़ी है, जो पुराने खयाल के लोग हैं, वे जोर से अपनी पुरानी बातों का शोर-गुल मचाना शुरू करेंगे ताकि उन्हें नई बातें सुनाई न पड़ें, वे बहरे बनने की कोशिश करेंगे। सुना होगा आपने, एक कहानी है, कि एक आदमी था जिसने अपने कानों में घंटे लटका रखे थे। वह अपने घंटों को दिन-रात बजाता रहता था। वह राम का भक्त था और कोई कृष्ण का नाम उसके कान में न चला जाए इसलिए उसने दोनों कानों में घंटे बजा रखे थे। वह घंटाकर्ण हो गया था। वह अपने घंटे बजाता रहता था और कृष्ण का नाम सुनाई न पड़ जाए। हम करीब-करीब घंटाकर्ण की हालत में हैं, जहां तक पुरानी पीढ़ी का संबंध है। वह अपने कान के घंटे बजाती रहती है ताकि दुनिया भर की आवाजें सुनाई न पड़ जाएं। यह बड़ी खतरनाक बात हो सकती है। नई पीढ़ी इससे कम खतरनाक नहीं है। नई पीढ़ी को पुरानी बातें न सुनाई पड़ जाएं, वह उसके लिए अपने कानों में घंटे बनाए Page 160 of 197 http://www.oshoworld.com

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