Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 141
________________ भारत का भविष्य भौतिकवादी नहीं बना देता। तो हत्या कर लो अपनी, गर्दन काट दो क्योंकि शरीर भौतिकवाद है। तुमने कभी नहीं सोचा कि खाना खाने से भौतिकवादी हो जाओगे। क्योंकि भोजन, भोजन भूख है, पदार्थ है । तुमने कभी नहीं सोचा यह कि जीवन भौतिकता और अध्यात्म का जोड़ है। जीवन अकेली आत्मा नहीं है और जीवन अकेला शरीर भी नहीं है, जीवन दोनों का जोड़ है। शांति विकसित होनी चाहिए, ध्यान विकसित होना चाहिए, मेडिटेशन विकसित होना चाहिए। वह टेक्नालॉजी है अंतस में जाने की । वह भी टेक्नालॉजी है। ध्यान है, योग है, समाधि है, धर्म है, प्रार्थना है, वह भी टेक्नालॉजी है। वह टेक्नालॉजी है आत्मा में जाने की । विज्ञान है, तर्क है, वह टेक्नालॉजी है पदार्थ में जाने की । और जीवन, जीवन दोनों का जोड़ है। मैं सुना है कि रोम में एक सम्राट बीमार पड़ा था। वह इतना बीमार था कि मरने के करीब था। चिकित्सकों ने कह दिया कि ठीक नहीं हो सकेगा। फिर अचानक एक खबर आई कि एक फकीर आया है गांव में, कहते हैं वह तो मुर्दों को जिला देता है, उसे ले आओ। उस फकीर को लाया गया, उस फकीर ने कहा कि कौन कहता है कि सम्राट बीमार है? जरा सी बीमारी है ठीक हो जाएगी। एक छोटा सा इंतजाम कर लो । जाओ नगर में किसी समृद्ध और सुखी आदमी के वस्त्र ले आओ। वे वस्त्र इसे पहना दो, यह ठीक हो जाएगा। वजीर भागे। उन्होंने कहा यह तो बड़ा सरल उपाय है। वे गए, नगर में जो सबसे बड़ा धनपति था उसके पास और कहा कि तुम अपने कपड़े दे दो । सम्राट मरण-शय्या पर है और एक फकीर ने कहा है अगर सुखी और समृद्ध आदमी के कपड़े मिल जाएं तो अभी ठीक हो जाएगा। जल्दी कपड़े दे दो। उस धनपति ने कहा, कपड़े, मैं अपनी जान भी दे सकता हूं सम्राट को बचाने के लिए। लेकिन मेरे कपड़े काम नहीं करेंगे, नहीं पड़ेंगे काम। मैं समृद्ध तो बहुत हूं लेकिन सुख, सुख से मेरा कोई भी संबंध नहीं है। फिर वे गांव के बड़े से बड़े लोगों के पास भटकते रहे। शाम हो गई। सभी जगह यही उत्तर मिला। जिनके पास धन था उन्होंने कहा धन तो है लेकिन सुख, सुख हमारे पास नहीं है, सुख से हम अपरिचित हैं। फिर तो वजीर घबड़ा गया और अपने साथ दौड़ते हुए नौकर से कहने लगा अब क्या होगा? मैं तो सोचता था कि बड़ा सरल उपाय है। वह नौकर हंसने लगा उसने कहा मालिक, तुम जब दूसरे की तरफ कपड़े मांगने गए तभी मैं समझ गया कि उपाय आसान नहीं । सम्राट का वजीर खुद अपने कपड़े देने की नहीं सोच रहा, किसी और के पास मांगने जाए ! वह वजीर कहने लगा किस मुंह को लेकर जाएं हम सम्राट के पास ? अंधेरा पड़ जाने दो, रात उतर आने दो, फिर हम चलेंगे अंधेरे में, कह देंगे कि नहीं हो सकता है महाराज। नहीं, उपाय नहीं बनता। रात होते-होते वे पहुंचे। महल के पास पहुंचे थे पीछे कि महल के पास नदी उस पार कोई जंगल से बांसुरी बजाता था । महल की दीवालों तक, नदी की लहरों पर उस बांसुरी की आवाज गूंजती थी। वह बांसुरी की आवाज कुछ ऐसी शांत थी, कुछ ऐसी आनंदपूर्ण थी कि वह वजीर कहने लगा, हो सकता है इस आदमी को आनंद मिल गया हो, सुख मिल गया हो। चलो इससे और पूछ लें। वे नदी पार करके उस व्यक्ति के पास गए। जो एक अंधेरे वृक्ष के नीचे, एक चट्टान पर बैठ कर बांसुरी बजाता था । अंधेरा था, कुछ दिखाई नहीं पड़ता था । उस व्यक्ति के पास जाकर उन्होंने पूछा कि मेरे भाई तुम्हें शायद शांति मिल गई हो, तुम्हारे संगीत में ऐसा आनंद मालूम होता है। शायद तुमने सुख Page 141 of 197 http://www.oshoworld.com

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