Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 145
________________ भारत का भविष्य लेकिन जिन्हें इस यात्रा से कोई भी संबंध नहीं है वे दस कदम चल कर जमीन पर और एक मकान तक पहुंच जाते हैं और लौट आते हैं और सोचते हैं कि धार्मिक हो गए हैं। ऐसे हम धार्मिक होने का धोखा देते हैं अपने को । एक आदमी रोज सुबह बैठ कर भगवान का नाम ले लेता है। निश्चित ही बहुत जल्दी में उसे नाम लेने पड़ते हैं क्योंकि और बहुत काम हैं और भगवान के लायक फुर्सत किसी के पास नहीं। बहुत जल्दी में, एक जरूरी काम है, वह भगवान के नाम लेकर निपटा देता है और चल पड़ता है। और कभी उसने अपने से नहीं पूछा कि जिस भगवान को मैं जानता नहीं उस भगवान के नाम का मुझे कैसे पता है? मैं क्या दोहरा रहा हूं? मैं भगवान का नाम दोहरा रहा हूं। भगवान का स्मरण हो सकता है भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता। क्योंकि भगवान का कोई नाम नहीं है। भगवान की प्यास हो सकती है, भगवान को पाने की तीव्र आकांक्षा हो सकती है लेकिन भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता। क्योंकि नाम उसका कोई भी नहीं है। एक आदमी बैठ कर राम-राम दोहरा रहा है, दूसरा आदमी जिनेंद्र - जिनेंद्र कर रहा है, तीसरा आदमी नमो बुद्धा और कोई चौथा आदमी कुछ और नाम ले रहा है। ये सब नाम हमारी अपनी ईजादें हैं, इन नामों से परमात्मा का क्या संबंध। परमात्मा का कोई नाम नहीं है। जब तक हम नाम दोहरा रहे हैं तब तक हमारा परमात्मा से कोई संबंध न होगा। हम आदमी के जगत के भीतर चल रहे हैं, हम मनुष्य की भाषा के भीतर यात्रा कर रहे हैं । और वहां जहां मनुष्य की सारी भाषा बंद हो जाती हैं, सारे शब्द खो जाते हैं, वहां हम किन नामों को लेकर जाएंगे? सब नाम आदमी के दिए हुए हैं। सच तो यह है कि आदमी खुद भी बिना नाम के पैदा होता है। आदमी के नाम भी सब झूठे हैं, कामचलाऊ हैं, यूटेलिटेरीयन हैं। उनका सत्य से कोई भी संबंध नहीं। हम जब पैदा होते हैं तो बिना नाम के और जब हम मृत्यु में प्रविष्ट होते हैं तो फिर बिना नाम के। बीच में नाम का थोड़ा सा संबंध हम पैदा कर लेते हैं। और उस नाम को हम मान लेते हैं कि यह हमारा होना है। हमने अपने लिए नाम देकर एक धोखा पैदा किया है। वहां तक ठीक था। आदमी क्षमा किया जा सकता था । उसने भगवान को भी नाम दे दिए। और नाम देने से एक तरकीब मिल गई उसे कि उस नाम को दोहरा ले वह दस मिनट और सोचता है कि मैंने परमात्मा का स्मरण किया। नाम से परमात्मा का कोई भी संबंध नहीं है। आप बैठ कर कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी दोहरा लें दस मिनट, दरवाजा, दरवाजा, दरवाजा दोहरा लें, पत्थर, पत्थर दोहरा लें, या आप कोई और नाम लेकर दोहरा लें। इस सबसे कोई भी धर्म का संबंध नहीं है। शब्दों को दोहराने से धर्म का कोई संबंध नहीं है। धर्म का संबंध है निःशब्द से, धर्म का संबंध है मौन से, धर्म का संबंध है परिपूर्ण भीतर जब विचार शून्य हो जाते और शांत हो जाते तब, तब धर्म की यात्रा शुरू होती है। और एक आदमी बैठ कर रिपीट कर लेता है एक नाम को राम-राम, राम-राम, दस-पांच दफा कहा और उसने निपटारा हो गया, उसने भगवान को स्मरण कर लिया। तो हमने तरकीबें ईजाद कर ली हैं धार्मिक दिखाई पड़ने की बिना धार्मिक हुए। और उन तरकीबों में हम जी रहे हैं और सोच रहे हैं कि पूरा मुल्क धार्मिक हो गया है। Page 145 of 197 http://www.oshoworld.com

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