Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ भारत का भविष्य मेरे एक शिक्षक थे। अपने गांव जाता था तो उनके घर जाता था। एक बार सात दिन गांव पर रुका था। दो या तीन दिन उनके घर गया। चौथे दिन उन्होंने अपने लड़के को एक चिट्ठी लिख कर भेजा कि अब कल से कृपा करके मेरे घर मत आना। तुम आते हो तो मुझे खुशी होती है, मैं वर्ष भर प्रतीक्षा करता हूं कि कब तुम आओगे और इस वर्ष मैं जीऊंगा कि नहीं, तुम्हें मिल पाऊंगा कि नहीं। लेकिन नहीं; अब मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरे घर आज से मत आना। क्योंकि कल रात तुमसे बात हुई और जब मैं सुबह प्रार्थना करने बैठा अपने मंदिर में, जहां मैं चालीस वर्षों से भगवान की पूजा करता हूं, तो मुझे एकदम ऐसा लगा कि मैं पागलपन तो नहीं कर रहा हूं। सामने एक मूर्ति रखी है, जिसको मैं ही खरीद लाया था और उस मूर्ति के सामने मैं आरती कर रहा हूं। अगर कहीं यह सिर्फ पत्थर है तो मैं पागल हूं ! और चालीस साल मैंने फिजूल गंवाए ! नहीं, मैं डर गया ! मुझे बहुत संदेह आ गया और चालीस साल की मेरी पूजा डगमगा गई ! अब तुम यहां मत आना । मैंने उनको वापस उत्तर दिया कि एक बार तो मैं और आऊंगा, फिर नहीं आऊंगा। क्योंकि एक बार मेरा आना बहुत जरूरी है। सिर्फ यह निवेदन करने मुझे आना है कि चालीस साल की पूजा और प्रार्थना के बाद अगर एक आदमी आ जाए और घंटे भर की उसकी बात, चालीस साल की पूजा और प्रार्थना को डगमगा दे तो इसका मतलब क्या है ? इसका मतलब यह है कि चालीस साल की पूजा और प्रार्थना झूठी थी, ऊपर खड़ी थी, भीतर संदेह मौजूद था। इस आदमी की बातचीत ने उस संदेह को फिर जगा दिया। वह हमेशा वहां भीतर सोया हुआ था । हम किसी के भीतर संदेह डाल नहीं सकते अगर उसके भीतर मौजूद न हो। संदेह डालना असंभव है। संदेह डालना बिलकुल असंभव है अगर उसके भीतर मौजूद न हो । संदेह भीतर मौजूद हो, बाहर से कोई बात कही जाए भीतर से संदेह वापस उठ कर खड़ा हो जाएगा। क्योंकि वह प्रतीक्षा कर रहा है बाहर निकलने की, आप उसको दबा कर बिठाए हुए हैं। सारे दुनिया के धर्म, भारत के धर्म, और सारे धर्म यह चेष्टा करते हैं कि कभी नास्तिक की बात मत सुनना, कभी अधार्मिक की बात को सुनना, कान बंद कर लेना, कभी ऐसी बात मत सुनना, क्यों? डर किस बात का है ? नास्तिक की बात इतनी मजबूत है कि आस्तिक के ज्ञान को मिटा देगी। अगर यह सच है तो आस्तिक का ज्ञान दो कौड़ी का है। लेकिन सच्चाई यह है, सच में जो आस्तिक है, जो जीवन को जानता है, परमात्मा को पहचानता है, जिसने आत्मा की जरा सी भी झलक पा ली, उसे दुनिया भर की नास्तिकता भी डगमगा नहीं सकती। लेकिन हम आस्तिक हैं ही नहीं ! भीतर हमारे नास्तिक बैठा हुआ है, ऊपर आस्तिकता पतले कागज की तरह घिरी हुई है। असली भीतर आस्तिक नहीं है तो कोई जब बाहर से नास्तिकता की बात करता है, भीतर वह जो सोया हुआ नास्तिक उठने लगता है और कहता है कि ठीक है यह बात । भारत इसलिए धार्मिक नहीं हो सका कि हमने धर्म को विश्वास पर खड़ा किया, ज्ञान पर नहीं । धर्म खड़ा होना चाहिए ज्ञान पर, विश्वास पर नहीं। अगर ठीक धार्मिक मनुष्य चाहिए हों इस देश में तो हमें जिज्ञासा जगानी चाहिए, इंक्वायरी जगानी चाहिए, विचार जगाना चाहिए, चिंतन-मनन जगाना चाहिए, विश्वास बिलकुल ही छोड़ देना चाहिए । Page 155 of 197 http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197