Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 148
________________ भारत का भविष्य की मैं जवाहरलाल नेहरू हं। तीन साल पहले जब आया था। तो मुझको भी यही भ्रम था। यही भ्रम मुझको भी हो गया था कि मैं जवाहरलाल हूं लेकिन तीन साल में इन सब अधिकारियों की कृपा से मैं बिलकुल ठीक हो गया हूं। मेरा यह भ्रम मिट गया। आप भी घबड़ाइए मत, आप भी दो-तीन साल रह जाएंगे तो बिलकुल ठीक हो सकते हैं। आदमी के पागलपन का लक्षण यह है कि वह जो है नहीं समझ पाता और जो नहीं है उसके साथ तादात्म्य कर लेता है कि वह मैं हूं। भारत को मैं धार्मिक अर्थों में एक विक्षिप्त स्थिति में समझता हूं, मैडनेस की स्थिति में समझता हूं। हम धार्मिक नहीं हैं और हम अपने को धार्मिक समझ रहे हैं। लेकिन यह दुर्घटना कैसे संभव हो सकी? यह दुर्घटना कैसे फलित हुई? यह कैसे हो सका? उसके होने के कुछ सूत्रों पर आपसे बात करनी है। पहला सूत्रः भारत धार्मिक नहीं हो सका क्योंकि भारत में धर्म की एक धारणा विकसित की जो पारलौकिक थी, जो मृत्यु के बाद के जीवन के संबंध में विचार करती थी। जो इस जीवन के संबंध में विचार नहीं करती थी। हमारे हाथ में यह जीवन है, मृत्यु के बाद का जीवन अभी हमारे हाथ में नहीं है। होगा तो मरने के बाद होगा। भारत का धर्म जो है वह मरने के बाद के लिए तो व्यवस्था करता है लेकिन जीवन जो अभी हम जी रहे हैं पृथ्वी पर, उसके लिए हमने कोई सुव्यवस्थित व्यवस्था नहीं की। स्वाभाविक परिणाम हुआ, परिणाम यह हुआ कि यह जीवन हमारा अधार्मिक होता चला गया। और उस जीवन की व्यवस्था के लिए जो कुछ हम कर सकते थे थोड़ा-बहत वह हम करते रहे। कभी दान करते रहे, कभी तीर्थयात्रा करते रहे, कभी गुरु के, साधु के चरणों की सेवा करते रहे। और फिर हमने यह विश्वास किया कि जिंदगी बीत जाने दो जब बूढ़े हो जाएंगे तब धर्म की चिंता कर लेंगे। अगर कोई जवान आदमी उत्सुक होता है धर्म में, तो घर के बड़े-बूढ़े कहते हैं अभी तुम्हारी उम्र नहीं कि तुम धर्म की बातें करो। अभी तुम्हारी उम्र नहीं, अभी खेलने-खाने के, मजे-मौज के दिन हैं, यह तो बूढ़ों की बातें हैं जब आदमी बूढ़ा हो जाए तब धर्म की बातें करता है। मंदिरों में जाकर देखें, मस्जिदों में जाकर देखें, वहां वृद्ध लोग दिखाई पड़ेंगे, वहां जवान आदमी शायद ही कभी दिखाई पड़े। क्यों? हमने यह धारणा बना ली कि धर्म का संबंध है उस लोक से, मृत्यु के बाद जो जीवन है उससे। तो जब हम मरने के करीब पहुंचेंगे तब विचार करेंगे। फिर जो बहुत होशियार थे उन्होंने कहा कि मरते क्षण में अगर एक दफे राम का नाम भी ले लो, भगवान का स्मरण कर लो, गीता सुन लो, गायत्री सुन लो, नमोकार मंत्र कान में डाल दो। आदमी पार हो जाता है तो जीवन भर परेशान होने की जरूरत क्या। मरते-मरते आदमी के काम में मंत्र फंक देते हैं और निपटारा हो जाता आदमी धार्मिक हो जाता। यहां तक बेईमान लोगों ने कहानियां गढ़ ली हैं कि एक आदमी मर रहा था, उसके लड़के का नाम नारायण था। मरते वक्त उसने अपने लड़के को बुलाया कि नारायण तू कहां हैं। और भगवान धोखे में आ गए। वे समझे कि मुझे बुलाता है और उसको स्वर्ग भेज दिया। ऐसे बेईमान लोग, ऐसे धोखेबाज लोग, जिन्होंने ऐसी कहानियां गढ़ी होंगी, ऐसे शास्त्र रचे होंगे, उन्होंने इस मुल्क को अधार्मिक होने की सारी व्यवस्था कर दी। Page 148 of 197 http://www.oshoworld.com

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