Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 139
________________ भारत का भविष्य एक-एक विद्यार्थी को बचपन से ही संदेह की कला सिखाई जानी चाहिए। आर्ट ऑफ डाउट । कैसे संदेह करें हम ? कैसे संदेह करते चले जाएं और तब तक न मानें जब तक कि हम उस निःसंदिग्ध रूप से संदेह करने की आगे कोई संभावना न रह जाए। और तब भी इतना ही माने कि अभी जितना हम संदेह कर सकते हैं उसमें यह सत्य मालूम पड़ता है। हो सकता है कल हम और संदेह कर सकें और यह सत्य न रह जाए। तब विज्ञान विकसित होता है, तब वैज्ञानिक दृष्टि विकसित होती है। विज्ञान का जन्म होता है संदेह से । अविज्ञान का जन्म होता है विश्वास से, श्रद्धा से। हम श्रद्धालु लोग हैं, हमारा धंधा विश्वास करने का रहा, हमने संदेह नहीं किया, इसलिए संदेह नहीं किया तो जीवन विकसित नहीं हुआ। संदेह होगा तो जीवन विकसित होगा। हर बाप को यह कामना करनी चाहिए कि उसका बेटा उस पर संदेह करे। हर गुरु को यह कामना करनी चाहिए, उसका विद्यार्थी उस पर संदेह करे। क्योंकि आने वाली पीढ़ी जितना संदेह करेगी उतनी ही पिछली पीढ़ी से आगे जाएगी और अगर विश्वास करेगी तो पिछली पीढ़ी के ही साथ बंधी रह जाएगी, आगे नहीं जा सकती। ये सारी बातें थीं जिन्होंने इस मुल्क के प्राणों को जकड़ रखा है। एक इनप्रिजनमेंट में, एक कारागृह में बांध रखा है। एक-एक जगह छोड़ देने की जरूरत है तब इस देश की चित्तधारा फैलेगी। लेकिन हमें डर लगता है, हमें डर यह लगता है कि अगर विश्वास उठ गया तो क्या होगा ? हमें डर लगता है अगर पुरानी पीढ़ियों पर नई पीढ़ियों ने संदेह किया तो क्या होगा? हमें डर लगता है कि अगर सारा पुराना - पुराना छोड़ कर लोग आगे बढ़ गए तो क्या होगा? कुछ भी नहीं होगा। जितनी देर तक आप पकड़ते हैं उतनी देर तक परेशानी होगी। जिस दिन आप परिपूर्ण रूप से नई पीढ़ियों को मुक्त करने के लिए राजी हो जाएंगे, बल्कि उनकी मुक्ति में सहयोगी हो जाएंगे, उसी दिन आप पाएंगे कि नई पीढ़ियां आपके प्रति अत्यंत आदर से भर गई हैं। यह जो आप सारी दुनिया में और इस मुल्क में, किसी विद्यार्थी ने यह पूछा है कि हमारे और पुरानी पीढ़ी के बीच फासला बढ़ता जा रहा है। कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता । हम क्रोध में हैं, हम चीजों को तोड़ रहे हैं, हम क्या करें? ये बच्चे तब तक तोड़े चले जाएंगे जब तक इनके भीतर की जो प्रतिभा है उसको हम विकसित होने के परिपूर्ण स्वतंत्र मार्ग नहीं खोल देते। जब तक पुरानी पीढ़ियां इनको जकड़ने की कोशिश करेंगी, तब तक ये क्रोध में चीजों को तोड़ेंगे। चीजों को नुकसान पहुंचाएंगे। जिस दिन पुरानी पीढ़ियां इन्हें मुक्त करने के लिए पूरी तरह राजी हो जाएंगी, उस दिन ये उनके अनुगत हो जाएंगी। उस दिन एक फेथ, एक अनुशासन, एक डिसिप्लीन पैदा होगी। जो अनुशासन जबरदस्ती नहीं लाया जाता बल्कि विवेक से उत्पन्न होता है। यह इस देश की प्रतिभा को मुक्त करने के लिए पुरानी पीढ़ी को बड़ी सोच की, बड़ी समझ की जरूरत है। नहीं; मत बांधे इन्हें पुराने विश्वास से । इनसे कहें कि जगाओ विवेक को, इनसे कहें कि जगाओ विचार को, इनसे कहें कि जगाओ संदेह को । तुम्हारे लिए एक बहुत नये देश, तुम्हारे लिए बहुत नये लोग, तुम्हारे लिए बहुत नया भविष्य जीतना है। अतीत हो चुका, अतीत से बंधे मत रह जाओ । अतीत को तुम्हारे चित्त पर बोझ मत बनने दो। वह तुम्हारा बर्डन न । बने तुम उसके ऊपर खड़े हो जाओ अतीत के । वह तुम्हारे पैर की शिला बने, तुम्हारे सिर का बोझ नहीं। तुम खड़े हो जाओ अतीत के कंधे पर और देखो आगे भविष्य में जहां नये सूरज Page 139 of 197 http://www.oshoworld.com

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