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भारत का भविष्य
था उसको श्रम के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। इन सौ स्त्रियों खिलाने-पिलाने का भी सवाल नहीं था, इसलिए हजार भी रख सकता था। एक मजदूर को आप मुक्त कर देंगे बिलकुल श्रम से तो वह भी सोचता है कि क्यों न दस पत्नियां रख सकें। या क्यों न रोज पत्नी न बदल लें। आखिर उसका क्या कसूर है। इच्छा उसकी भी सदा यही थी, लेकिन इच्छा जरूरतों से दबी थी, उसको वह पूरा नहीं कर सकता था। अब समय है, सुविधा है, खाने का इंतजाम है, क्यों न करे। फिर सौ पत्नियों को इकट्ठा रखना एक झंझट की बात है, तो पत्नियों को समाप्त ही क्यों न करें, रोज एक नई स्त्री क्यों न खोजी जा सके। जिन-जिन इच्छाओं को उसने अब तक मजबूरी में रोक रखा था, उन सबको वह पूरा करना चाहता था। कितने लोगों की इच्छा है कि वे कविता करें, कितने लोगों की इच्छा है कि वे ध्यान करें, कितने लोगों की? कितने लोग मोक्ष जाना चाहते हैं? और मजा यह है कि जितने अभी आपको दिखाई पड़ते हैं कि ध्यान में उत्सुक हैं, इनकी भी अगर दूसरी इच्छाएं पूरी हों तो सौ में से निन्यानबे ध्यान में उत्सुक न होंगे। इनका भी ध्यान में उत्सुक होने का सौ में निन्यानबे मौके पर यह कारण होता है कि इतने परेशान हैं जिंदगी से कि शायद ध्यान से राहत मिल जाए। अगर जिंदगी की सारी परेशानियां अलग कर दें, तो सौ संन्यासियों में से निन्यानबे भाग जाएंगे फौरन। क्योंकि वे आए इसलिए नहीं थे कि ध्यान में उनकी कोई रुचि थी या आत्मा की खोज में कोई रुचि थी, संसार इतना कष्टपूर्ण था कि यह उनके लिए पलायन था, सुविधा थी। यानी एक आदमी आता है वह कहता है कि बड़ी मुश्किल है लड़की की शादी नहीं हो रही, नौकरी नहीं मिल रही लड़के को, पत्नी बीमार है, तो कोई रास्ता बताएं प्रार्थना का, पूजा का कि यह सब ठीक हो जाए। अगर यह सब ठीक हो जाए तो क्या यह आदमी प्रार्थना और पूजा का रास्ता पूछने आने वाला है। यह काहे के लिए आएगा। मगर ऐसा मत समझना कि इसकी पत्नी ठीक हो जाए, इसकी लड़की की शादी हो जाए, इसके लड़के को नौकरी लग जाए, तो यह बड़ा अच्छा आदमी हो जाएगा। इसने बहुत कुछ रोक रखा है इस उपद्रव की वजह से जिससे यह नहीं कर पा रहा है। यह भी चाहता है कि बैठ कर शराब पीए, यह भी चाहता है कि सड़कों पर नाचे, यह भी चाहता है कि ताश खेले, दांव लगा दे जूए पर, यह भी चाहता है कि सब थ्रिन। जिस दिन इसके सारे उपद्रव नहीं हैं, जिनकी वजह से यह दबा हुआ है, उस दिन यह बे-लगाम है। उस दिन आपके सामने सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि इस आदमी को आक्युपाइड कैसे रखो? आज अमेरिका में वही सवाल है। क्योंकि उनको लग रहा है कि आने वाले पचास सालों में सब कुछ आटोमेटिक हो जाएगा, कम्प्यूटर से चलने लगेगा। आदमी की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। यह आदमी जो अनआक्युपाइड छूट जाएगा पहली दफा यह करेगा क्या? यह जमीन को स्वर्ग बनाएगा कि नर्क बनाएगा? आदमी को गौर से देखो तो पक्का है कि नर्क बनाएगा, स्वर्ग-वर्ग नहीं बनाएगा। तो अब सवाल यह है कि बड़ी से बड़ी क्रांति हुई जा रही है कि आदमी को श्रम से मुक्त कर दो। अगर सच पूछा जाए तो श्रम से मुक्त करने का गहरा अर्थ यह है कि आदमी को हम शरीर की चिंता से मुक्त कर दें। लेकिन शरीर की चिंता से मुक्त करके यह आत्मा की चिंतना में पड़ने वाला है या कि सदा से जो दबाई हुई वासनाएं हैं, जिनको यह कभी पूरी नहीं कर पाया था, यह उनको पूरे करने में लगेगा। क्रांति बड़ी भारी घटित हुई जा रही है।
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