Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 120
________________ भारत का भविष्य अब जैसे मैं कहूं कि हम पूरे पांच हजार साल से व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। इंडिविजुअल फ्रीडम । अब व्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अंतिम अर्थ हो सकता है वह यह है कि व्यक्ति को मरने का हक होना चाहिए। व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले लोगों ने कभी नहीं सोचा था यह कि मरने का हक भी व्यक्ति की स्वतंत्रता है। उन्होंने सोचा था बोलने का हक व्यक्ति की स्वतंत्रता है । वह दो कौड़ी का है बोलने का हक । मरने का हक एक्झिसटेंसिअल है। ज्यादा कीमती है। अगर मैं मर ही नहीं सकता तो मेरे बोलने, न बोलने का भी क्या मूल्य है। अगर मुझे इसलिए जीना पड़ता है कि आप मुझे मरने नहीं देना चाहते कि आपका कानून कहता है कि तुम नहीं मर सकते। तो तुम मेरी जिंदगी की न्यामक हो । मगर व्यक्ति की स्वतंत्रता वालों ने कभी नहीं सोचा था कि यह इसका अंतिम फल हो सकता है। होता, होता मतलब इसका यह है । अभी मैं देख रहा था। नीत्शे ने एक बहुत अदभुत बात लिखी है। उसने लिखा कि दुनिया में सारे धर्म मर रहे हैं। उसका कारण यह नहीं है कि दुनिया में अधार्मिक लोग बढ़ गए हैं। उसका कुल कारण यह है कि सभी धर्मों ने सत्य के ऊपर पांच हजार साल तक इतना जोर दिया कि अब लोग कहते हैं कि जो सत्य है वही हम मानेंगे। और तुम्हारा इस पर सत्य सिद्ध नहीं हो रहा । तुम्हारी ही जिद कि धर्म सत्य की खोज है। तुमने ही समझाया है लोगों को कि सत्य को पाना अंतिम लक्ष्य है जीवन का। अब लोग कहते हैं कि सत्य ही अंतिम लक्ष्य है पाने का । लेकिन तुम्हारा ईश्वर सत्य नहीं मालूम पड़ता, झूठ मालूम पड़ता है। सरासर झूठ है । और तुम सिद्ध करो कि कहां सत्य है? और वह तुम सिद्ध नहीं कर पा रहे। तो नीत्शे कहता है कि तुमने जो जलाई थी आग, उसके ही फल भोग रहे हो। यानी इसमें किसी का हाथ नहीं है। तुमने अगर पहले से ही, तो नीत्शे एक बहुत अजीब बात कहता है, वह कहता है कि सत्य-वत्य का कोई मूल्य नहीं। नीत्शे कहता है कि जो असत्य जीवन को आनंदपूर्ण बनाए वह असत्य ही वर्णीय है। नीत्शे यह कहता है। हम सत्य की चिंता क्यों करें। हम कोई सत्य के लिए पैदा हुए। जीवन परम मूल्य है । और अगर झूठ से सहारा मिलता है और सपने देखने में सुख मिलता है, तो मुझे... । यह सभी धार्मिकों को लगेगा कि बड़ी उपद्रव की बात है। लेकिन इसका अंतिम फल यह हो सकता है कि धर्म वापस लौट सकते हैं। यह बात अगर ठीक से समझी जाए तो धर्म वापस लौट सकेंगे, नहीं तो धर्म अब बच नहीं सकते। क्योंकि सत्य की परख अगर बढ़ती चली जाए तो अंततः आदमी पूछेगा कि तुम्हारे ईश्वर को प्रयोगशाला में खड़ा करो, जब तक हम जांच-परख न कर लें। जब तक पक्का न हो जाए कि वह | जब तक प्रूफ हम न जुटा लें, तब तक अब हम मान नहीं सकते। लेकिन जब चीजें पूर्णता पर टूटती हैं, अपनी क्लाइमेक्स पर, तभी उदघाटन होता है कि उपद्रव हो गया। तभी धार्मिकों ने जोर दिया है सत्य पर, कोई धार्मिक असत्य पर जोर देने वाला नहीं हुआ कभी भी। लेकिन नीत्शे कहता है कि उनके जोर ने ही धर्म की जड़ें काट दीं। हां, जब तक चलता रहा मामला जब तक कि इस जोर को उसके अंतिम निष्कर्ष तक, लाजिकल कनक्लूजन तक नहीं खींचा गया। जैसे ही आप किसी चीज को उसके अंतिम निष्कर्ष तक खींचेंगे, तभी आपको पता चलेगा कि इसके चुकता परिणाम क्या हो सकते हैं। अब हम कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की गरीबी मिटनी चाहिए। क्यों ? इसलिए मिटनी चाहिए कि भूख बड़ी बुरी चीज है। और एक समाज में कुछ लोग भरे पेट रहें और कुछ लोग भूखे रहें । अशोभन, अनैतिक है। लेकिन Page 120 of 197 http://www.oshoworld.com

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