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भारत का भविष्य
इस समय जरूरत है कि हिंदुस्तान की सारी शक्तियां पुल्ड हो जाएं। हिंदुस्तान की सारी शक्तियां इकट्ठे होकर अगर श्रम करें, तो कोई कारण नहीं कि बीस साल में इस मुल्क में भी समृद्धि का सूरज निकल सके। और कोई कारण नहीं कि हम भी आदमी की जैसी जिंदगी बसर करने के योग्य हो सकें। और कोई कारण नहीं कि हम जानवर की तरह भूखे और प्यासे और नंगे और जमीन पर भिखारी की तरह हाथ फैलाए हुए फिरते रहें। हमारे देश के नेता सारी दुनिया में भीख मांगने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर रहे हैं। वे भीख मांग कर इस मुल्क को कब तक बचा सकते हैं? और हमें जो थोड़ी सी रौनक दिखाई पड़ती है, खयाल रखना, वह रौनक हमारी नहीं है, वह अमेरिका गेहूं की है। वह ज्यादा देर नहीं चलने वाली। आज अमेरिका में चार किसान जितना काम कर रहे हैं उनमें से एक किसान की मेहनत हिंदुस्तान को मिल रही है। लेकिन अमेरिकन के इकोनॉमिस्ट परेशान हो गए हैं। अभी वहां के बहुत विचारशील लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि अब हिंदुस्तान को
और सहायता देनी गलत है। क्योंकि यह सहायता हम कब तक देंगे? और जिस दिन यह सहायता बंद होगी उस दिन हिंदुस्तान में इतना भयंकर अकाल पड़ेगा कि सब जिम्मेवारी हम पर आएगी कि इन्होंने सहायता देनी बंद कर दी इसलिए ये ही जिम्मेवार हैं। इसलिए अमेरिका का वैज्ञानिक तो सलाह दे रहा है, अर्थशास्त्री सलाह दे रहा है कि अब सहायता बंद कर दो, अब यह सहायता आगे खींचनी उचित नहीं है। तो ठीक भी नहीं है। मैं भी मानता हूं, हिंदुस्तान को सहायता अब नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि सहायता की बहुत आदत भी शायद नुकसान पहुंचा सकती है। हम अपनी मुसीबतों में छोड़ दिए जाने चाहिए। अगर हम अपनी मुसीबतों में संघर्ष कर सकते हैं मुसीबतों से। लेकिन हम अपने से संघर्ष करने से बचें, तो हम मुसीबतों से संघर्ष करें। दो ही रास्ते हैं : या तो हम लड़ें या हम मुसीबतों से लड़ें। लेकिन हम आपस में लड़ेंगे, तो हम संघर्ष मुसीबतों से नहीं कर सकते हैं। लेकिन पूरा मुल्क आपस में लड़ने में बड़ा आतुर है। और हम अपने को
लड़ कर नष्ट करते रहे हजारों साल तक, आगे भी हम अपने को लड़ कर नष्ट करते रहेंगे। और हम ऐसी फिजूल की बातों पर लड़ते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं है। कहीं भाषा पर लड़ेंगे, कहीं धर्म पर लड़ेंगे, कहीं मंदिर-मस्जिद पर लड़ेंगे, कहीं हजरत मोहम्मद का बाल चोरी चला जाएगा तो लड़ेंगे, कहीं किसी शंकर जी की पिंडी टूट जाएगी तो लड़ेंगे। हम इतनी फिजूल की बातों पर लड़ रहे हैं कि सारी दुनिया भविष्य में हम पर हंसेगी कि हमारे सामने बड़े-बड़े सवाल थे, उनको छोड़ कर हम इन पर लड़ते रहते हैं। बड़े सवाल हैं मुल्क के सामने! शायद मरने और जिंदा होने का सवाल है! शायद जिंदगी और मौत का सवाल है! अगर हम बीस साल में मुल्क की सारी शक्तियों को क्रिएटिव मोड़ नहीं दे सकते, तो हम बीस साल में जमीन पर रहने के योग्य नहीं रह जाएंगे। उन्नीस सौ अठहत्तर और उन्नीस सौ पिचासी के बीच हिंदुस्तान में इतने बड़े अकाल की संभावना है जिसमें दस करोड़ लोगों से लेकर बीस करोड़ लोग तक मर सकते हैं। लेकिन हम बैठ कर सुन लेंगे। शायद हम कहेंगे, भगवान की मरजी होगी तो बचा लेगा और मरजी नहीं होगी, तो भगवान की मरजी के खिलाफ पत्ता नहीं हिलता, हम क्या करेंगे? ऐसे नहीं चलेगा। हमने भगवान की मरजी बहुत जगह से तोड़ दी है। हमने जन्म दर कम कर ली है, हमने बीमारियों का इलाज कर लिया है, हमने मृत्यु दर तोड़ डाली है और उधर हम बच्चे पैदा किए जा रहे हैं।
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