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भारत का भविष्य
हिंदुस्तानी संस्कृति की मोटर की जो लाइट है वह पीछे रहेगी, आगे नहीं हो सकते। आगे क्या फायदा है ? वह इंडियन ही नहीं होगी, वह भारतीय नहीं होगी । यह तो पश्चिमी ढंग है आगे लगाना आंख, यह आगे लाइट लगाना। पीछे होना चाहिए लाइट। पीछे की उड़ती हुई धूल दिखाई पड़ती रहनी चाहिए कि कितना रास्ता पार कर लिया है।
लेकिन आपको पता है जिंदगी आगे की तरफ जाती है, पीछे की तरफ नहीं जाती । देख पाते हो पीछे की तरफ लेकिन चलना हमेशा आगे की तरफ पड़ता है, चलना पीछे की तरफ कभी नहीं होता। कोई उपाय नहीं है पीछे की तरफ जाने का। जाना हमेशा आगे की तरफ। और जो लोग पीछे की तरफ देखते हैं और आगे की तरफ जाते हैं उनका जीवन अगर दुर्घटना बन जाता हो तो आश्चर्य क्या है । चलें आप आगे को देखें पीछे को तो टकराएंगे नहीं ?
हिंदुस्तान टकरा रहा है हजारों साल से लेकिन उसे यह बुद्धिमत्ता नहीं आती कि पीछे की तरफ देखना बंद करो, शक्ति आगे की तरफ देखने के लिए परमात्मा ने दी है, आगे देखो। वह जो दूर अभी दिन पैदा नहीं हुआ उसको देखो, अभी वह भी जो सूरज नहीं जन्मा उसकी तरफ आंखें उठाओ, अभी जो तारा उगने वाला है उसको देखो, क्योंकि कल तुम उसके पास पहुंच जाओगे और अगर तुमने आज उसे नहीं देखा तो कल तुम उसके पास पहुंच कर एकदम घबड़ा जाओगे। समझ भी नहीं पाओगे कि क्या करना है और क्या नहीं करना ? नहीं हम पीछे की तरफ देखेंगे।
मैंने एक छोटी सी कहानी सुनी है। मैंने सुना है, एक गांव था बहुत पुराना, उस पुराने गांव में गांव जितना ही पुराना एक चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था उसकी दीवालें इतनी जर-जर और जीर्ण हो गई थी कि उसके भीतर कोई प्रार्थना करने जाने में भी डरता था। क्योंकि भीतर जाना तो खतरा था कि वह कभी भी गिर जाए। हवा चलती थी जरा तो लगता था अब गिरा, आकाश में बादल गरजते थे तो उसकी दीवाले कंपने लगती थीं। प्रार्थना करने उपासकों ने उसमें आना बंद कर दिया । संरक्षण की कमेटी थी। ट्रस्टी थे उसके। उन्होंने बैठक बुलाई कि कोई आता ही नहीं, अब क्या करें? उन्होंने भी बैठक बाहर बुलाई। वे भी भीतर नहीं गए उसके । क्योंकि वहां जान का खतरा था। जहां अनुयायी न जाते हों वहां नेता कभी नहीं जाते। यह खयाल रखना, अनुयायी को पहले चलाते हैं पीछे नेता चलते हैं । अखबारों में भर दिखाई पड़ते हैं कि वे आगे चल रहे हैं। असलियत में, जिंदगी में अनुयायी के पीछे चलते हैं । वह जहां अनुयायी चला जाता है वे भी पीछे से चले जाते हैं। ट्रस्टी भी बाहर बैठे। उन नेताओं ने बैठक की और उन्होंने कहा, अब क्या किया जाए? कोई आता नहीं मंदिर में ।
तो उन्होंने चार प्रस्ताव पास किए। वह जरा ध्यान से सुन लेना । वह हिंदुस्तान की जिंदगी से बड़ा उनका संबंध होने वाला है।
उन्होंने चार प्रस्ताव पास किए। आप कहेंगे उस चर्च में उस कमेटी के प्रस्ताव का हिंदुस्तान की जिंदगी से क्या लेना-देना? लेकिन नहीं, कुछ लेना-देना है। उन्होंने पहला प्रस्ताव पास किया कि पुराने चर्च को गिरा देना आवश्यक है क्योंकि वह बहुत पुराना हो गया, अब कोई उपासक उसमें नहीं आते। सर्वसम्मति से उन्होंने स्वीकृति दी। उन्होंने तत्काल दूसरा प्रस्ताव पास किया कि — और एक नया चर्च बनाना जरूरी है ताकि लोग प्रार्थना करने आ सकें। और फिर उन्होंने तीसरा प्रस्ताव पास किया उसको भी सर्वसम्मति से और वह यह कि
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