________________
भारत का भविष्य
अपने अतीत के असली । इतिहास नहीं। हम हैं असली सबूत अतीत के । बेटा अपने बाप का सबूत है। फल अपने बीज का सबूत है। फल अगर कड़वा है और फल कहे कि बीज तो बड़ा मधुर था। तो हम मानेंगे नहीं। हम कहेंगे कि बीज का पता नहीं चला होगा तुम्हें। बीज कड़वा ही रहा होगा, अन्यथा तुम कड़वे कैसे हो जाते ! तुम उससे पैदा हुए हो, तुम उसके सबूत हो । आज बीज तो नहीं है खो गया मिट्टी में कहीं, लेकिन तुम हो। और तुम बताते हो कि बीज कैसा रहा होगा !
हिंदुस्तान में कुछ व्यक्ति अच्छे पैदा हुए हैं। समाज कभी भी अच्छा नहीं था। हम सबूत हैं उसके। वह समाज तो खो गए। हम हैं सबूत उसके । हम उससे पैदा हुए हैं। हम उसी की प्रोडक्ट हैं। इसलिए भूल कर भी पीछे लौटने का विचार मत करें। पीछे से तो हम आ रहे हैं। वहां जाने की अब जरूरत नहीं है। हमें जाना है आगे । और आगे जहां जाना है वहां अतीत की भूलों से हम सीख लें, अतीत के ढांचे को पुनरुक्त करने की जरूरत नहीं है। नये ढांचे, जीवन के लिए नये मार्ग, जीवन के लिए नया चिंतन, नये द्वार, नये तथ्य, नई समाज व्यवस्था खोजनी है। नहीं; राम बहुत प्यारे हैं, लेकिन राम-राज्य बिलकुल भी नहीं चाहिए। गांधी को बहुत प्रेम था राम से। वे दीवाने राम | कहें कि बिलकुल दीवाने थे राम के। बड़ा प्रेम उनको रहा होगा। मरते वक्त, गोली भी लगी तो न पिता का नाम याद आया, न मां का, न भाई का, न बेटों का, न गांधीवादियों का, राम का नाम याद आया। नाम आया राम का याद! लग गई छाती में गोली उस क्षण में वही नाम याद आया जो सबसे प्यारा उन्हें रहा होगा। जो प्राणों के प्राण में बैठा रहा होगा वही उस क्षण में याद आ सकता है। उस वक्त धोखा नहीं दिया जा सकता। फुर्सत कहां हैं मरते आदमी को कि धोखा दे दे। तो उस वक्त सोचे कि अभी राम का नाम ले दूं तो अच्छा असर पड़ेगा, लोग कहेंगे कि धार्मिक है । इतनी फुर्सत वहां नहीं है। आमतौर से तो ऐसे ही लोग राम-राम कहते हुए सड़क पर से निकलते हैं। जब कोई नहीं सुनता तो धीरे-धीरे कहते हैं या नहीं भी कहते। जब रास्ते पर कोई दिखाई पड़ता है कि आ रहा है तब जोर-जोर से राम-राम, राम-राम जोर से कहने लगते हैं। वह सुनाने के लिए। लेकिन गांधी की छाती में तो लगी है गोली, सुनाने का सवाल कहां है! इस अंतिम क्षण में तो वही निकल सकता है जो प्राणों के प्राणों में गहरे बैठा हो । वे राम उनके प्राण हैं। राम के वे दीवाने हैं। उसी दीवानगी में वे कहने लगे कि राम का राज्य चाहिए। वह भूल है। वह बात ठीक नहीं है। राम का राज्य नहीं चाहिए। हमें तो भविष्य का राज्य निर्मित करना है। कोई सामंतवादी व्यवस्था में वापस नहीं लौट जाना है। इन्हीं सारी बातों पर देश के प्राणों को चिंतन करना जरूरी है।
मैं यह नहीं कहता हूं कि जो मैं कहता हूं वही मान लें। जो भी आदमी आपसे कहे कि मेरी बात मान लो वह आदमी अच्छा नहीं हैं, सज्जन नहीं है, वह आदमी ठीक नहीं है, वह आदमी खतरनाक है। सच तो यह है कि अपनी बातों को मनवाने की जबरदस्त चेष्टा वही करता है जिसको खुद शक होता है कि मेरी बातें ठीक हैं या नहीं। मुझे उसका प्रयोजन नहीं है। मुझे जो ठीक लगता है वह मैं पूरे मुल्क को कह देना चाहता हूं। अगर वह ठीक लगे ठीक, गलत लगे उसे कचरे में फेंक देना । अगर आपके विवेक को ठीक लगे तो ठीक, अन्यथा मेरे कहने से कुछ सत्य नहीं हो जाता है। लेकिन मेरी इतनी स्पष्ट बात से भी गांधीवादी परेशान हो गए।
मैं कहता नहीं किसी को कि मेरी बात मान लो । मैं कहता नहीं कि मेरा वचन आप्त वचन है कोई आथेरिटी है। मैं कहता नहीं यह। मैं यह कहता हूं कि मैं गांधी पर सोचता हूं, जो मुझे दिखाई पड़ता है वह मुझे कहना चाहिए।
Page 89 of 197
http://www.oshoworld.com