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भारत का भविष्य
होमोसेक्सुअलिटी जो है यह परवर्सन की बात हो गई, यह अस्वस्थ चित्त का लक्षण हो गया। और स्वस्थ मार्ग हमने रोका और अस्वस्थ मार्ग पैदा किया। तो हमने सब तरह से अस्वस्थ मार्ग पैदा किए हैं। तो उधर मेरी बात में उनको तकलीफ होनी शुरू हुई। क्योंकि मैंने कहा कि हम एक तो बचपन से बच्चों को जितनी सहजता से वे सेक्स को ले सकें, उतनी सहजता देनी चाहिए। उन्हें पता ही नहीं होना चाहिए कि सेक्स कोई ऐसी अनूठी और कोई ऐसी खास बात है जिसे छिपाना है, जिससे डरना है। यह नहीं होना चाहिए।
सामान्य तौर से वे अपना नसीब देखते हैं। ओवर ग्लोरीफिकेशन जो आपका...जितना और जैसे प्रीस्ट डिपार्ट आया—कि...और सामाजिक स्थिति को आपने बुद्ध बनाया। इसे बड़ा अदभुत मानते हैं। ऐसा तो नाउ एवरीबडी यह कहते हैं कि सेक्स का नालेज देना मांगता। ओवर ग्लोरीफिकेशन ऑफ फैक्ट।
हां, यह जो है न, यह ओवर ग्लोरीफिकेशन नहीं है। वह फैक्ट की बात है सिर्फ। मैं जो कहता हूं, मैं जो कहता हूं, मेरी समझ यह है कि मनुष्य के सेक्स के अनुभव में, गहरे सेक्स के अनुभव में, एक क्षण को मनुष्य को वही अनुभव होता है जो ध्यान के अनुभव में होता है। ओवर ग्लोरीफिकेशन नहीं है। जस्ट ए फैक्ट। यह जो सेक्स की जो आंत्रिक अनुभूति है, संभोग की जो गहरी से गहरी अनुभूति है, उस गहरी अनुभूति में जो शांति का, थॉट लेसनेस का, एक क्षण को सारे विचार समाप्त हो जाते हैं। एक क्षण को ईगो भी मिट जाती है। दो व्यक्ति जो संभोग में गए हैं, एक क्षण को जब क्लाइमेक्स पूर्ण की भाव-दशा होती है, तो अहंकार भी मिट जाता है, विचार भी शून्य हो जाते हैं। चित्त एक गहरी अटेंशन की हालत में रह जाता है। वह जो प्रतीति है, वह जो अनुभव है, वह एक क्षण में, बहुत छोटे क्षण में ध्यान का ही क्षण है, यह मैंने कहा है। और मनुष्य को सबसे पहले ध्यान का जो बोध आया है, वह सेक्स से आया है, यह मैंने कहा है। क्योंकि मनुष्य के पास ध्यान में सीधे जाने का कोई उपाय न था। पहली दफा मनुष्य को जो अनुभव आया है कि सेक्स के एक क्षण में कोई घटना घटती है कि माइंड एक ट्रांसफार्मेशन अनुभव करता है। वह अनुभव पहले सेक्स से ही उपलब्ध हुआ है। और वह जो अनुभव है उसको हम दूसरे मार्गों से भी विकसित कर सकते हैं। तो मेरा जो कहना है, यानी योग जो है वह संभोग में उपलब्ध होने वाले अनुभव को अन्यथा मार्गों से विकसित करने का उपाय है। और जब एक व्यक्ति ध्यान को उपलब्ध करने लगे सेक्स से अन्यथा, तभी वह व्यक्ति सेक्स से मुक्त होना शुरू होता है यह भी मेरा कहना है। क्योंकि तब उसे सेक्स में जाकर उस अनुभव को करने की जरूरत नहीं रह जाती। वह उस अनुभव को अन्यथा उपलब्ध कर लेता है। तो मेरा कहना यह है कि यह मेरी मान्यता कि सेक्स का अनुभव ध्यान की ही अत्यंत प्रारंभिक अवस्था का अनुभव है। यह मेरी मान्यता इस आधार पर। और मैं मूल्य इसको देना चाहता हूं क्योंकि इसी मान्यता के आधार पर ब्रह्मचर्य में दीक्षा दी जा सकती है। और कोई रास्ता नहीं है। जब ध्यान के मार्ग से व्यक्ति को वैसे ही सुख की बहुत बड़ी राशि उपलब्ध होने लगती है, जो उसे संभोग में बहुत कुछ खोकर, और बहुत क्षुद्रतम मिलती थी, तभी ध्यान के मार्ग से धीरे-धीरे सेक्स से चित्त उठता है और ब्रह्मचर्य की तरफ प्रवेश पाता है।
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