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भारत का भविष्य
से बिलकुल बाहर हो जाता है। मैं जो कह रहा हूं, मेरे सामने इमिजिएट प्रॉब्लमस महत्वपूर्ण नहीं हैं। क्योंकि मैं मानता हूं, इमिजिएट प्रॉब्लमस जो हैं वे हमारे बेसिक थिंकिंग के आउटकम हैं, कान्सिक्वेंसिस हैं। बेसिक थिंकिंग अपनी प्रॉब्लम है।
(प्रश्न का ध्वनिमुद्रण स्पष्ट नहीं।)
जरूर! लिमिटेड है। लिमिटेड है। और यह भी सच है, लेकिन उस लिमिटेशन को तोड़ने का सवाल है । उसको ही तोड़ने का सवाल है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
बिलकुल ठीक है, लेकिन वह भी क्यों ? वह भी क्यों ?
बिकाज कंट्री इज़ पुअर ।
नहीं, कंट्री पुअर है यह नहीं । शरीर के प्रति जितना हमें ध्यान देना चाहिए वह हमारे भाव के भीतर नहीं कि शरीर के प्रति ध्यान देना है। कुछ भी खा लिया और काम चला लेना । शरीर के प्रति एक बेसिक निग्लेक्शन हमारे भीतर है। और वह जो हमारी फिलासफी का हिस्सा है। हमारी फिलासफी यह कह रही है कि शरीर से कुछ लेना-देना नहीं। एक दफा खाना खा लो तो भी ठीक है, कुछ भी खा लो तो भी ठीक है । शरीर तो गौण है, असली चीज तो आत्मा है।
मैं आपसे यह कह रहा हूं कि आपने भी वैटेलिटी खोज ली होती, विटामिन खोज लिए होते। आपने भी खोज लिया होता कि कौन सी डिफिशिएंसी है। लेकिन शरीर से हमें कोई लेना-देना नहीं। बल्कि सच यह है कि हम उस आदमी को आदर देते हैं जो शरीर के प्रति जितना उपेक्षापूर्ण हो। हम उसको आदर देते हैं । और जो आदमी शरीर की जितनी चिंता करे, उसको हम आदर नहीं देते। अगर गांधी थर्ड क्लास में चलेंगे तो हम आदर ज्यादा देंगे बजाए फर्स्ट क्लास में चलने के । और उसका बुनियादी कारण क्या है? उसका बुनियादी कारण यह है कि हम तीन हजार वर्ष से यह सोचते हैं कि शरीर की जो उपेक्षा करता है वही आत्मवादी है।
तो मेरा मतलब आप समझ रहे हैं न? यह जो हम नहीं खोज पाए डिफिशिएंसी और हम लेजी हो गए। उसके कारण डिफिशिएंसी में नहीं; उसके कारण भी हमारी बेसिक थिंकिंग है। हिंदुस्तान जो है एक तरह का एंटी-बॉडी एटीट्यूड है उसके माइंड का । और वह एंटी- बॉडी एटीट्यूड जो है वह नुकसान पहुंचा रहा है। और वह जब तक नहीं बदल देते तब तक हम खोज - बीन कर भी नहीं पाएंगे। अभी भी हालत यह है, अभी भी हालत यह है कि अभी भी हम जो खाना खाते हैं, हमारा शिक्षित से शिक्षित भी व्यक्ति कोई बहुत बोधपूर्वक खाना खा रहा हो ऐसा नहीं है कि वह क्या खा रहा है? वह जो खा रहा है, शिक्षित से शिक्षित व्यक्ति भी, उसको कोई बोध नहीं
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