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भारत का भविष्य
न, न, न, वे तो उतरेंगे धरती पर। एक दफे, स्पेस हो तो ही धरती पर उतरेंगे। स्पेस ही न हो तो धरती पर कुछ भी नहीं उतरेगा। तो अभी स्पेस में ही नहीं है। यानी जो तकलीफ है, जो तकलीफ है वह यह है कि इस मुल्क के पास अभी मस्तिष्क में भी विचार नहीं है जो धरती पर उतर सके। धरती पर उतने की जल्दी मत करिए। वहां स्पेस तो होने दीजिए, तो धरती पर उतरेंगे।
तो लांगटर्म और शार्टटर्म दो प्रोग्राम बनाएंगे न।
बिलकुल ही ठीक है न। अभी तो, अभी तो शार्टटर्म की फुर्सत नहीं है अभी तो लांगटर्म ही सवाल है। अभी मेरे सामने तो जो सवाल है वह यह कि एक बार विचार बीज फैल जाएं तो इंप्लीमेंटेशन में उतरना शुरू हो जाएंगे। इसकी मुझे चिंता की बात नहीं है। हमारी हमेशा चिंता इंप्लीमेंटेशन की ज्यादा होती है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
वे जो फेल न होते, अगर वे विचार-क्रांति वाले ही होते। वे इंप्लीमेंटेशन...(अस्पष्ट) कोई फर्क नहीं इसलिए फेल हो गए, यह मैं आपसे कहता हूं। जो आप कह रहे हैं वह गलती बात है। विनोबा अगर सिर्फ विचार-क्रांति करते तो फेल न होते, और हो सकता था उनकी विचार-क्रांति परिणाम भी लाती। विचार-क्रांति एक तरफ रह गई, वे इंप्लीमेंटेशन में पड़ गए। और इंप्लीमेंटेशन में पड़ कर सबका सब खराब कर दिया। यानी विनोबा की असफलता विचार की असफलता नहीं है, इंप्लीमेंटेशन की असफलता है। और वह विनोबा विचार की दृष्टि से असफल नहीं हो गए, जो उन्होंने किया उसमें फंस गए।
समव्हेयर यू सेइंग गांधी जी कुड नॉट ट्रांसफार्म ऑर चेंज ह्यूमन कैपिटिलिस्ट दे ऑर गोइंग ए कैपिटलिस्ट सोसाइटी..
नहीं, मैं तो मानता हूं कि चेंज किया ही नहीं जा सकता, इसलिए गांधी नहीं कर सके। वह धारणा ही गलत थी एक-एक व्यक्ति को चेंज करने की। मेरा तो मानना ही नहीं है, ये चेंज किए जा सकते हैं। मेरा तो कहना यह है कि गांधी भूल में थे, वे सोचते थे कि हम कैपिटलिस्ट को चेंज कर लेंगे। कैपिटलिज्म चेंज किया जा सकता है, कैपिटलिस्ट नहीं किया जा सकता।
कैपिटलिस्ट किस तरह से चेंज किया जा सकता है?
जैसे सारी दुनिया में हो रहे हैं। रूस में कैसे चेंज किए गए। चीन में कैसे चेंज हो रहे हैं।
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