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भारत का भविष्य
के बीच विरोध है, इन दोनों के बीच संघर्ष है। इन दोनों के बीच ऐसा संबंध है जैसा दुश्मनों के बीच होता है। मित्रों के बीच नहीं। भारत किस ओर? यह निर्णय रास्ते का कम और चलने वालों के बीच सहयोग का ज्यादा है। और अगर जवान
और बूढ़े नई और पुरानी पीढ़ी के बीच एक सहयोग हो सकें, तो बहुत कठिन नहीं है कि हम तय कर लें कि किस ओर? लेकिन तय करना बेकार है। क्योंकि जो तय कर सकते हैं, जो देख सकते हैं उनके पास पैर नहीं
और जो चल सकते हैं वे आंख वालों की बात सुनने को राजी नहीं। भारत अगर मरेगा तो चीन के हमले से शायद बच भी जाए, पाकिस्तान से उसे कोई बड़ा खतरा नहीं: तीसरा महायद्ध अगर दनिया में हो तो शायद भारत में तो शायद ही हो। उसकी कोई संभावना नहीं। लेकिन भारत अगर मरेगा तो वह जो जनरेशन गैप है, वह जो भारत की दो पीढ़ियों के बीच बढ़ता हुआ फासला है, टूटते हुए ब्रिज, टूटते हुए सेतु हैं, बूढ़े और जवान के बीच कहीं कोई बोलचाल नहीं रह गया, कोई कम्युनिकेशन नहीं है। मैं बहुत सैकड़ों घरों में ठहरता हूं। लेकिन मुझे ऐसा दिखाई नहीं पड़ता कि बाप और बेटे के बीच कोई बोलचाल की स्थिति है। ऐसा नहीं कि वे नहीं बोलते, जरूर बोलते हैं। लेकिन बोलने में और बोलचाल में बहुत फर्क है। बाप जरूर बोलता है बेटे से, जब उसे कोई उपदेश देना होता है। और ध्यान रहे, दिए गए उपदेश कभी भी नहीं लिए जाते हैं। और यह भी ध्यान रहे कि दिए गए उपदेश मन में बड़ा क्रोध पैदा करते हैं। इसलिए बाप उपदेश देता रहता है, बेटा कान बंद करके सुनता रहता है। बेटे भी बाप से कभी मिलते हैं, जब उनकी जेब खाली होती है और बाप के जेब पर हाथ रखना होता है। लेकिन जिसकी भी जेब पर आप हाथ रखते हैं उससे बातचीत नहीं हो पाती। उससे बहुत मुश्किल हो जाता। ऐसे बाप-बेटे घर में बच कर निकलते हैं। पहले हम सोचते थे, घर वह जगह है जहां सारे लोग साथ रहते हैं। अब मैं हजारों घरों को देख कर आपसे कहना चाहता हूं: घर वह जगह है जहां सारे लोग एक-दूसरे से बच कर रहते हैं। बाप डरा रहता है बेटा सामने न पड़ जाए, कोई उपद्रव न हो जाए। बेटा डरा रहता है कि बाप सामने न पड़ जाए कोई उपद्रव न हो जाए। बेटी मां से बच रही है, बहू सास से बच रही है, भाई भाई से बच रहा है, वे सब बच रहे हैं। घर वह जो जगह है जहां हम एक-दूसरे से बच कर रहते हैं। घर वह कन्वीनियंस है जहां हम साथ भी होते हैं और साथ होते भी नहीं। घर एक सुविधापूर्ण व्यवस्था है जिसमें साथ रहने का धोखा पैदा होता है और कोई साथ नहीं होता। यह जो भारत की दो पीढ़ियों के बीच बढ़ता हुआ अंतराल है, इसके नाम हजार होंगे—यह कभी हड़ताल बनता है, कभी पथराव बनता है, कभी घेराव बनता है। इसके नाम हजार होंगे लेकिन इसकी पहचान एक है। और वह पहचान यह है कि भारत के अतीत, भारत के बूढ़े, और भारत के भविष्य, भारत के जवान एक-दूसरे की तरफ पीठ करके खड़े हुए हैं। वे एक-दूसरे से दूर हटते जा रहे हैं।
और देश की सारी की सारी शक्ति उनके इस विरोध में नष्ट और क्षीण हो रही है। यदि हम इन दो पीढ़ियों के बीच संवाद ला सकें, लाया जा सकता है। और मैं मानता हूं प्रत्येक शिक्षण संस्था को दो पीढ़ियों के बीच संवाद लाने की कोशिश करनी चाहिए। जहां बाप-बेटे, मां और बेटियां आमने-सामने बैठ कर खुले दिल से हार्ट टू हार्ट हृदय की बात कर सकें. और सीधी और साफ बात कर सकें। एक-दसरे को अपनी बात सीधी और साफ
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