Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 77
________________ भारत का भविष्य इसका मतलब यह होता है कि आलोचना सिर्फ वे लोग करते हैं जो समझते नहीं और प्रशंसा केवल वे लोग करते हैं जो समझते हैं। साहब प्रशंसा करने की लिए कोई भी जरूरत नहीं है। प्रशंसा तो कुत्ते भी पूंछ हिला कर कर देते हैं। आलोचना के लिए समझने की जरूरत है। श्री देबरभाई को मैं कहंगा, अगर वे प्रशंसा ही किए जा रहे हैं गांधीवाद की, तो ठीक से समझ लें, समझे नहीं होंगे। अन्यथा गांधीवाद को अरथी पर चढ़ा देने का वक्त आ गया। गांधी तो जीएं कोई हजार-हजार वर्ष जीएं। गांधी जैसे प्यारे आदमी मुश्किल से पैदा होते हैं दुनिया में। लेकिन गांधी के आसपास गांधीवादियों ने जो एक वाद का जाल पैदा किया है उसे अरथी पर चढ़ा देने की जरूरत है। सच तो यह है कि गांधी ने कभी चाहा नहीं और कभी कहा नहीं कि मेरा कोई वाद है। गांधी निरंतर कहते थे कि मेरा कोई वाद नहीं है। इतने भले लोग वाद पैदा नहीं करते हैं। वाद और विवाद भी बहुत रद्दी तरह के लोग पैदा करते हैं। गांधी ने कभी कहा नहीं कि मेरा कोई वाद है। वे तो एक अदभुत विनम्र आदमी थे। वे कहते थे, जो पहले कहा गया है बहुत बार वही मैं नये प्रसंगों में नये ढंग से कहता हूं, मेरा कोई वाद नहीं है। लेकिन फिर यह गांधीवाद किसने खड़ा कर दिया? बुद्ध कहते थे, मेरा कोई वाद नहीं है। लेकिन फिर बुद्धवाद किसने खड़ा कर लिया? ये अनुयायी हमेशा से बहुत ईजाद करने वाले लोग रहे हैं। इन्हें असली आदमी से कोई मतलब नहीं होता। इनका तो जब वाद खड़ा हो जाता है तब ही प्रयोजन हल होता है। जीसस सूली पर चढ़ गया उससे किसी को मतलब नहीं है। अठारह सौ, उन्नीस सौ वर्षों में जीसस के पीछे जो पादरी है उसने क्रिश्चिएनिटी खड़ी कर ली। क्रिश्चिएनिटी खड़ा करना बहुत आसान और अपने मतलब की बात है। जीसस बहुत खतरनाक आदमी है। जीसस के साथ पादरी का जीना बहुत मुश्किल है। लेकिन क्रिश्चिएनिटी पादरी की अपने हाथ की बनावट है। वह उसका जैसा मतलब निकालना चाहता है मतलब निकालता है, जो व्याख्या करना चाहता है व्याख्या करता है। मैंने सुना है, एक घटना बड़ी अदभुत है। एक कहानी है। मैंने सुनी है कि अठारह सौ वर्ष बाद जीसस के मरने के, स्वर्ग में जीसस को खयाल आया कि अब अगर मैं दुनिया में जाऊं तो मेरा बहुत स्वागत होगा। क्योंकि जब मैं गया था गलत जगह पहुंच गया था। अपने आदमी ही नहीं थे कोई, कोई क्रिश्चिएन न था, कोई ईसाई न था, मैं पहुंच गया यहूदियों में। उन्होंने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, वे मुझे समझ नहीं सके। लेकिन अब तो आधी दुनिया ईसाई हो गई है। गांव-गांव में मेरे चर्च हैं, गांव-गांव में मेरे पादरी हैं। आपको पता है सिर्फ कैथेलिक पादरियों की संख्या बारह लाख है। सिर्फ कैथेलिक, प्रोटेस्टेंट अलग हैं और पच्चीस मत-मतांतर अलग हैं। अब तो मेरे पादरियों से भरा है पृथ्वी का पूरा का पूरा जगत, गांव-गांव, देश-देश ईसाई हैं, अब मैं जाऊं तो मेरा ठीक स्वागत होगा। अठारह सौ वर्ष बाद जीसस जेरुसलम में एक दिन सुबह-सुबह उतरे, रविवार का दिन था, धर्म का दिन। धार्मिक आदमी बड़े होशियार हैं। उन्होंने दिन भी बांट लिए हैं। छुट्टी के दिन को धर्म का दिन कहते हैं। क्योंकि उस दिन कुछ करना नहीं पड़ता। बाकी छह दिनों को अधर्म का दिन मानते हैं। क्योंकि दुकान चलानी पड़ती है, दफ्तर चलाना पड़ता है। रविवार के दिन जीसस उतर गए जेरुसलम में, एक झाड़ के नीचे खड़े हो गए। चर्च के धार्मिक लोग लौटते थे। जीसस बड़े प्रसन्न होकर उनकी तरफ देखने लगे कि ये लोग मुझे जरूर पहचान जाएंगे। वे लोग पहचान गए, पास आए और कहने लगे, यह कौन नकली आदमी खड़ा हुआ है? यह कौन अभिनेता, बिलकुल जीसस बन कर खड़े हुए हो साहब! कहां से आए हो आप? Page 77 of 197 http://www.oshoworld.com

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