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भारत का भविष्य
भीतर हैं, वे क्या कर रहे हैं? लाखों डाक्टर नौकरी के भीतर हैं, वे क्या कर रहे हैं? बाहर जो खड़ा है वह कहता है कि मुझे भीतर ले लो, फिर मैं कुछ करूंगा। लेकिन भीतर जो हैं वे कोई सबूत नहीं देते करने का। नहीं, हमारी एप्रोच गलत है, हमारे सोचने का ढंग गलत है। और फिर सवाल यह है कि काम नहीं है मुल्क के पास। तो मुल्क आसमान से काम पैदा नहीं कर सकता। यह हमें समझ लेना चाहिए कि जितने लोग हैं हमारे पास, उतना काम नहीं है हमारे पास। और यह भी हमें समझ लेना चाहिए कि जितने लोगों को हमने शिक्षित कर दिया है, उतने लोगों को हम काम नहीं दे सकते हैं। यह है नहीं। इसलिए इसमें जो बहुत हिम्मतवर हों, उन्हें काम लेने से इंकार कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे हिम्मत का प्रयोग करें और नंगे हाथों दिशाएं खोजें। यह तो कमजोरों के लिए दफ्तर छोड़ देने चाहिए। एंप्लाइमेंट जो है वह हिंदुस्तान में बुद्धिहीनों के लिए छोड़ देना चाहिए। बुद्धिमानों को एंप्लाइमेंट के बाहर हो जाना चाहिए। जो एंप्लाइमेंट के बिना कुछ नहीं कर सकते और उनके लिए एंप्लाइमेंट छोड़ देना चाहिए। जिनकी थोड़ी भी हिम्मत है, और जिनमें थोड़ी भी ताकत है, उन लोगों को एंप्लाइमेंट का मोह छोड़ कर बाहर हो जाना चाहिए।
और मैं मानता हूं कि अगर मुल्क में, यह ध्यान रहे कि सारा मुल्क दुनिया में नई चीजें नहीं खोज लेता, थोड़े से लोग खोजते हैं। आज यह बिजली आपको हवा दे रही है, रोशनी दे रही है। यह कोई सारी दुनिया की खोज नहीं है। मॉसज ने दुनिया में कुछ नहीं खोजा है। लेकिन एक आदमी बिजली खोज लेता है, सारी दुनिया के काम आ जाती है। लेकिन जो आदमी बिजली खोज लेता है, वह अगर पहले से ही मान कर चलता हो कि उसे ये-ये शर्ते पूरी होंगी तब वह खोज पाएगा, तो शायद दुनिया में कभी खोज न हो। यह बड़े मजे की बात है कि दुनिया में आमतौर से अब तक जितनी खोजें की हैं ये उन लोगों ने की हैं जो खोजों की दुनिया से बिलकुल बाहर थे। दुनिया के सत्तर परसेंट वैज्ञानिक नॉन-प्रोफेशनल हैं। जो आदमी केमेस्ट्री का प्रोफेसर है वह केमेस्ट्री में कभी खोज नहीं करता देखा जाता। कोई और आदमी, जो केमेस्ट्री की दुनिया से संबंधित नहीं, केमेस्ट्री की खोज करता है। जो आदमी फिजिक्स का प्रोफेसर है, वह फिजिक्स में खोज नहीं करता। जितनी नोबल-प्राइज है वह आमतौर से उस विषय के प्रोफेशनल प्रोफेसर्स को नहीं मिलती, वह किन्हीं और को मिलती है। इसका कारण क्या है? अगर एंप्लाइमेंट से कुछ काम बन जाता हो तब तो बात और होती है। नहीं, ऐसा नहीं है। और आमतौर से यूनिवर्सिटी जो है वह मोस्ट आर्थाडाक्स जगह होती है—जहां कि हमें सोचना चाहिए ज्ञान की नई खोज होगी, वहां कुछ नहीं होता। ज्ञान की सारी नई खोजें यूनिवर्सिटी के बाहर होती हैं। और अक्सर यूनिवर्सिटीज इंकार करती हैं खोजों को स्वीकार करने से। दुनिया में बहुत सी खोजें हैं जो तीस-तीस, चालीस-चालीस साल रुक कर पड़ी रहीं। क्योंकि बुद्धिमान वर्गों ने उनको स्वीकार नहीं किया। उनको किन्हीं ऐसे लोगों ने खोजा जिनके पास कोई पदवी नहीं थी, कोई उपाधि नहीं थी। जिंदगी में जो खोज है वह एक दिशा और एक एप्रोच और एक ढंग की बात है। शर्त से कोई खोज नहीं होती। शर्त सदा न खोजने वाले की होती है। खोज सदा बेशर्त और अनकंडीशनल है। जिन लोगों को खोजना है उन्हें अनकंडीशनली खोजने में लगना चाहिए। और बड़े हैरानी की बात है यह कि अक्सर दुनिया में बहुत बड़ी
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