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भारत का भविष्य
लोग यह सुझाव दे रहे हैं कि अगर पिता को अपना पिता की हैसियत बनाए रखनी है तो उसे बेटे के ज्ञान से निरंतर परिचित होना जरूरी हो गया है। बेटा जो जान रहा है उसे जान लेना जरूरी हो गया है।
यह जो बेटे के पास, नई उम्र के आदमी के पास ज्यादा ज्ञान हो गया है इससे बड़ा उपद्रव पैदा हुआ है। स्वभावतः बाप जब सब कुछ जानता था और बेटा कुछ भी नहीं जानता था तो बाप के प्रति एक आदर था, जो डगमगा गया है, वह आदर अब आगे नहीं रह सकता। क्योंकि वह आदर ज्ञान पर खड़ा था। बाप ज्यादा जानता था बेटा कम जानता था। इसलिए बाप आद्रत था। अब वह बात खत्म हो गई है। गुरु और शिष्य के बीच हजारों साल का फासला था। गुरु जानता था हजारों साल के अनुभव को और शिष्य को कुछ भी पता नहीं था। तो शिष्य गुरु के चरणों में सिर रखता था। अब यह सिर रखना बहुत मुश्किल हो गया। क्योंकि अब फासला, डिस्टेंस बहुत कम है, न के बराबर है। नहीं रह गया है।
यह जो स्थिति है इस स्थिति ने पहली दफा यह सवाल ठीक से उठा दिया है— भारत किस ओर ? अब भारत कहां जाएगा? क्या भारत को अब भी भारत का बूढ़ा आदमी दिशा देगा ? अगर देगा, तो भारत कहीं भी नहीं जाएगा। वह जहां था वहीं रहेगा। बूढ़े आदमी की हिम्मत बदलाहट की कम हो जाती है। बुढ़ापे का मतलब ही यही है बायोलाजिकली भी, जो जीवशास्त्र आपमें से पढ़ते होंगे वे भी कहेंगे कि बुढ़ापे का मतलब ही यह है कि बदलाहट की क्षमता कम हो गई, बूढ़े की नसें सख्त हो जाती हैं अब बदल नहीं सकतीं।
बच्चा बदल सकता है, लोचपूर्ण है, फ्लेक्जीबल है । अगर बूढ़े भारत को दिशा देंगे तो वे दिशा नहीं देंगे। भारत जैसा सरोवर था तालाब वह उसे वैसा ही बनाए रखना चाहेंगे। लेकिन अगर बच्चे भारत को दिशा देंगे तो भी कम खतरा नहीं है। क्योंकि बूढ़े दिशा देंगे तो तालाब सड़ जाएगा, बंद रह जाएगा, हम दुनिया के साथ गति न कर सकेंगे। और अगर बच्चों ने दिशा दी तो सिर्फ अनार्की पैदा होगी अराजकता पैदा होगी, हजार दिशाएं हो जाएंगी। नदी नहीं बनेगी हजार छोटी-छोटी धाराएं टूट जाएंगी, समाज बिखर जाएगा, व्यवस्था खंडित हो जाएगी, और एक अराजकता, एक अनार्की पैदा हो जाएगी।
अगर हम बूढ़े से दिशा मांगें, तो डेडनेस परिणाम में आएगी, मृत्यु, एक मुर्दा समाज । और अगर हम बच्चों से दिशा मांगें, तो एक अनार्की पैदा होगी, एक अराजक समाज। ये दोनों ही विकल्प चुनने जैसे नहीं हैं। अगर बूढ़े दिशा देंगे तो भारत के अतीत को ही वे भारत पर फिर से थोपना चाहेंगे। वे फिर राम-राज्य ही लाना चाहेंगे। हालांकि कोई चीज कभी लौटाई नहीं जा सकती, जो गई वह गई । इतिहास पुनरुक्त नहीं होता है। इस जगत में कुछ भी लौटता नहीं, जो गया वह गया । पुनरुक्ति नहीं होती । राम-राज्य लौटाया नहीं जा सकता है। लेकिन अगर बूढ़े भारत के भविष्य की भी कल्पना करेंगे तो राम-राज्य की भाषा में करेंगे। अतीत ही उनके लिए नक्शा होगा। वे उसी नक्शे को भारत पर थोपना चाहेंगे।
यह संभव नहीं है। इस चेष्टा में भारत के विकास की संभावनाएं क्षीण होंगी। अगर भारत के बच्चे भारत को दिशा देना चाहेंगे, तो स्वभावतः वे भारत के ऊपर पश्चिम को थोपना चाहेंगे। क्योंकि आज भारत के बच्चे के पास जो भी ज्ञान उपलब्ध हो रहा है वह पश्चिम से उपलब्ध हो रहा है । और ध्यान रहे, जिस तरह अतीत को नहीं ओढ़ा जा सकता उसी तरह किसी दूसरी संस्कृति और दूसरे समाज में पनपे हुए खयालों को भी हम कभी
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