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भारत का भविष्य
मैं हिंदुस्तान के जवान को कहना चाहता हूं कि चुनौती है तुम्हारे लिए। और ऐसी चुनौती बहुत मुश्किल से आती है। और जिनकी जिंदगी में आती है उनको सौभाग्यशाली मानना चाहिए अपने को कि परमात्मा ने उन्हें मौका दिया है जहां वे नई जमीन तोड़ें। लेकिन शायद हम बैलगाड़ी में बैठे रहने के आदी हैं । हमने कहीं भी नई जमीन नहीं तोड़ी बहुत सैकड़ों वर्षों से, इसलिए हमारी आदत टूट गई है नई जमीन तोड़ने की।
लेकिन सारी दुनिया नई जमीन तोड़ रही है। सारी दुनिया में बहुत कुछ नया हो रहा है, जो कभी नहीं हुआ था । ऐसे फल पैदा किए गए हैं जो कभी पैदा नहीं किए गए थे। ऐसा गेहूं पैदा कर लिया गया है जो कभी पैदा नहीं किया गया था। तो हमारे बच्चे क्या करेंगे? वे एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ कर सिर्फ परीक्षाएं देते रहेंगे और परीक्षाएं देकर ज्यादा से ज्यादा एग्रीकल्चर दफ्तर में क्लर्क बन कर बैठ जाएंगे। क्या करेंगे? एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी अगर ऐसे बच्चों को नहीं निकाल पाती है जो मुल्क को नये भोजन दे सकें, अगर ऐसे बच्चे नहीं निकाल पाती है जो गेहूं के ऐसे वृक्ष दे सकें जो हर साल फसल दे और हर साल उनको काटना न पड़े और साल में दो बार फसल दे, हम बहुत...
इस बड़ी दुनिया में जहां आदमी चांद पर उतर गया है, अगर हम आदमी को जमीन पर पेट भरने के योग्य नहीं बना सकते, तो हमारा सारा ज्ञान और हमारी सारी खोजें नासमझी से हैं और बेकार हैं। मैं नहीं मान सकता हूं कि आदमी को भूखे मरने की अब कोई जरूरत है, और मैं नहीं मान सकता हूं कि आदमी को नंगे रहने की कोई जरूरत है, और मैं नहीं मान सकता हूं कि कोई भी आदमी अब बिना मकान के रहे। लेकिन हमारी जवानी कमजोर है, और हमारी जवानी साइंटिफिक नहीं है, और हमारे जवान पास नई दिशाओं का खयाल नहीं है। मैं तो चाहूंगा, प्रत्येक यूनिवर्सिटी को, सच में ही अगर वह यूनिवर्सिटी है, तो उसे इस बात की दिशा में ही सर्वाधिक चेष्टा में लग जानी चाहिए कि उसके बच्चे पुराने किस्म के काम न मांगें ।
जिस यूनिवर्सिटी के बच्चे हिंदुस्तान में वापस लौट कर गांव में, शहर में पुराना काम मांगते हैं, वह यूनिवर्सिटी ने अपना काम पूरा नहीं किया, वह यूनिवर्सिटी बेकार है। वहां सिर्फ हम थोथा काम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय से निकला हुआ लड़का भी वही काम मांगे जो पुराने लोग मांग रहे थे, जो इस विश्वविद्यालय से कभी नहीं निकले थे, तो इस विश्वविद्यालय ने किया क्या ? छह साल हमने क्या किया ? लेकिन नहीं, हम यहां दूसरे तरह के कामों में लगे हैं।
विद्यार्थी पढ़ने में उत्सुक नहीं हैं, शिक्षक पढ़ाने में उत्सुक नहीं हैं। शिक्षक अपनी सिनियारिटी में उत्सुक है, वह अपनी पोलिटिक्स में उत्सुक है, वह अपनी यात्रा: लगा हुआ है। कई मौके-बे-मौके थोड़ी-बहुत फुरसत मिल जाती है तो वह लड़कों की तरफ देख लेता है । अन्यथा उसकी आंखें आगे लगी हैं कि कौन वाइसचांसलर हो गया है, कौन डीन हो गया है। वह अपनी यात्रा पर लगा हुआ है।
विद्यार्थी अपनी यात्रा पर लगे हुए हैं कि वे कितना तोड़ रहे हैं, कितना मिटा रहे हैं। वे किस तरह बिना पढ़े पास हो जाएं, वे किस तरह चोरी से पास हो जाएं, वे किस तरह, उन्हें कोई मेहनत न करनी पड़े और सर्टिफिकेट मिल जाएं। इसके लिए हड़ताल कर रहे हैं, इसके लिए उपद्रव कर रहे हैं। यह मुल्क मर जाएगा। अगर यही हाल है तो यह मुल्क बच नहीं सकता। क्योंकि ध्यान रहे, मुल्क के बचने की सारी संभावनाएं उसकी इंटेलिजेंस पर निर्भर होती हैं।
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