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भारत का भविष्य
हिंदुस्तान को तो बहुत बड़े रसायनज्ञों की जरूरत है, जो हिंदुस्तान को ऐसा भोजन दे सकें जो जमीन में पैदा नहीं होता। सिंथेटिक फूड की जरूरत है। रोज संख्या बढ़ती चली जाएगी। अब आपको पुराने भोजन करने की आदतें छोड़नी पड़ेंगी कि आप रोज एक किलो भोजन पेट में डालें। यह पागलपन अब आगे नहीं चल सकता। अब आपको एक गोली पर राजी होना पड़ेगा। लेकिन मैं मानता है कि एक गोली स्वास्थ्यपूर्ण हो सकती है एक किलो भोजन की बजाय। क्योंकि एक किलो भोजन करना बहुत ही अनुत्पादक पुराना ढंग है। एक किलो भोजन करके पचाते तो एक गोली के लायक ही हैं। बाकी फिर शरीर को बाहर भी फेंकना पड़ता है। वह फिजूल की मेहनत है। उस मेहनत से मुल्क को बचाने की जरूरत है। लेकिन हिंदुस्तान के लड़के उस दिशा में कोई फिक्र नहीं करेंगे। वह पुराना ढंग जारी रहेगा। हिंदुस्तान का लड़का भी पुराने ढंग से ही खाने की मांग करता रहेगा। यह अब नहीं चल सकता है। हिंदुस्तान के लड़के को नये ढंग के खाने खोजने चाहिए। समुद्र के पानी को हम खाना बना सकते हैं। सूरज की किरणों को भी खाना बना सकते हैं। हवा से भी खाना खींचा जा सकता है। लेकिन हिंदुस्तान के लड़के जब इन दिशाओं में मेहनत करेंगे। हम हमेशा जमीन से खाना नहीं पाते थे। आज से पांच हजार साल पहले आदमी जंगल में जानवर को मारता था
और खाना पाता था। एक दिन जानवर कम हो गए और लोग बढ़ गए, तब उन लोगों में से कुछ जवानों ने जमीन के फल खाने शुरू किए। लेकिन फिर फल भी कम पड़ गए, तब फिर फलों को बोना शुरू किया। अब बोना भी बेकार हो गया, अब जमीन ही कम पड़ गई। अब हमें नई दिशा में खोज करनी चाहिए। अब हमें आकाश में, पाताल में, पानी में, हवा में, सूरज की किरणों में भोजन की फिक्र करनी चाहिए। वह सारी फिक्र की जा सकती है। लेकिन हिंदुस्तान के लड़के पुराने ढांचे में ही अपने दरवाजे खटखटाए चले जाते हैं। अगर हिंदुस्तान में कोई भी लड़का यह कहता है कि मैं अनएंप्लाइड हूं और एंप्लाइमेंट नहीं खोज पाता है, तो हमें मानना चाहिए कि उसकी शिक्षा ठीक से नहीं हुई। क्योंकि हिंदुस्तान जैसे मुल्क में जिसकी इतनी आवश्यकताएं हैं, अगर एंप्लाइमेंट न खोजा जा सके तो और एंप्लाइमेंट कहां खोजा जा सकेगा? । जहां इतनी आवश्यकताएं हैं जो पूरी नहीं हो रही, वहां तो हम हजार दिशाएं खोज सकते हैं। लेकिन हमारे मन में खोज का भाव नहीं है। हम जिसे वैज्ञानिक कहते हैं अपने मुल्क में, वह भी ज्यादा से ज्यादा विज्ञान का विद्यार्थी होता है, वैज्ञानिक नहीं होता। वैज्ञानिक होने का मतलब ही यह है कि हम जिंदगी को नये रास्ते दें, हम जिंदगी को नई दिशाएं दें, हम जिंदगी को नये पहलू दिखाएं, हम जिंदगी को समृद्धि के नये उपाय सुझाएं। लेकिन हिंदुस्तान में बच्चे यह नहीं करेंगे। बच्चे क्या कर रहे हैं? वे बसें तोड़ रहे हैं, यूनिवर्सिटीज के कांच फोड़ रहे हैं, वे शिक्षकों पर पत्थर फेंक रहे हैं, वे हड़ताल कर रहे हैं, वे घेराव कर रहे हैं। ये सब आप करते रहें। ये सब अनुत्पादक काम ही नहीं हैं, विध्वंसक काम हैं, इससे मुल्क की जिंदगी अच्छी नहीं हो सकेगी। और मुल्क का जो पुराना आदमी है वह क्रोध से भर गया है इन हरकतों को देख कर। और इन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं रह गया।
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