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भारत का भविष्य
क्योंकि बाप ज्यादा जीया था, इसलिए जो थिर जिंदगी थी उससे वह ज्यादा परिचित हो गया था। बेटा कम जीया था, इसलिए वह कम परिचित था। असल में पुराना ज्ञान अनुभव से ही आता था, और कोई रास्ता ही नहीं था। बाप अनुभवी था, बेटा गैर-अनुभवी था। गुरु अनुभवी था, शिष्य गैर-अनुभवी था। इसलिए शिष्य अगर गुरु के चरणों में सिर रखता था तो इसमें कोई आश्चर्य न था। आज शिष्य को गुरु के चरणों में सिर रखवाना मुश्किल है। क्योंकि आमतौर से आज गुरु और शिष्य के बीच एक पीरियड से ज्यादा का फासला नहीं होता ज्ञान का। वह एक घंटे पहले जो तैयारी करके शिक्षक आया होता है उतना ही फासला होता है। अब इतने से फासले के लिए पैर नहीं छआ जा सकता। और अगर विद्यार्थी थोड़ा बुद्धिमान हो तो शिक्षक से ज्यादा जान सकता है। इसमें कोई कठिनाई नहीं रह गई। लेकिन पुरानी दुनिया में विद्यार्थी कभी शिक्षक से ज्यादा नहीं जान सकता था। अगर बेटा थोड़ा होशियार हो तो बाप से ज्यादा जान ही लेगा। असल में पिता तीस साल पहले यूनिवर्सिटी में पढ़ा था, बेटा तीस साल बाद पढ़ेगा। तीस साल में दुनिया हजारों साल में जितना बदलती है उतना ज्ञान बदल जाएगा। जब बेटा घर लौटेगा तो बेटा ज्यादा जान कर लौटेगा बाप से। लेकिन बाप अपनी पुरानी अकड़ को कायम रखना चाहे तो नुकसानदायक है। सच बात यह है कि स्थिति बदल गई है। जब पहले बेटा सदा बाप से पूछता था। अब ऐसा नहीं है। अब बाप को अक्सर बेटे से पूछने के लिए तैयार होना पड़ेगा। और अगर हम इसके लिए राजी न होंगे तो हम बहुत बेचैन हो जाएंगे, बहुत परेशान हो जाएंगे। जब ज्ञान इतने जोर से बदलता है तो पुराने थिर संबंध बदल जाते हैं। वह जो स्टेटिक रिलेशनशिप होती है वह बदल जाती है। इस समय भारत के सामने जो समस्याओं की जटिलता है उसमें एक कारण यह भी है कि पिता सोचता है कि वह ज्यादा जानता है, गुरु सोचता है कि वह ज्यादा जानता है, क्योंकि हमारी उम्र ज्यादा है। असल में उम्र पहले ज्यादा होती थी तो ज्यादा ज्ञान होता था। अब यह सच नहीं रहा है। अब उम्र के ज्यादा होने से ज्ञान के ज्यादा होने का कोई भी संबंध नहीं रह गया। क्योंकि आप तीस साल पहले पढ़े थे, तीस साल में इतनी घटनाएं घट गई हैं, चीजें इतनी बदल गई हैं कि आप करीब-करीब आउट ऑफ डेट होंगे। आपका जो ज्ञान है वह करीब-करीब गलत हो चुका होगा। उस ज्ञान को थोपने का आग्रह बेटों में बगावत पैदा करेगा। हिंदुस्तान में बेटे बगावत कर रहे हैं। उस बगावत का आधा जिम्मा हिंदुस्तान के बाप पर है, आधा जिम्मा हिंदुस्तान के शिक्षक पर है। क्योंकि हम बेटों पर पुराने ढंग से चीजों को थोप रहे हैं। नहीं, बेटे और बाप के बीच का फासला बहुत कम हो गया है। वह दो पीढ़ियों का फासला नहीं रहा है अब, वह ज्यादा से ज्यादा बड़े भाई और छोटे भाई का फासला हो गया है। और उस फासले में भी छोटे भाई के जानने की संभावनाएं बड़े भाई से ज्यादा हो गई हैं। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच बाप-बेटे का नाता था, वह बदल गया, अब शिक्षक और विद्यार्थी के बीच बाप-बेटे का नाता नहीं; क्योंकि बाप-बेटे के बीच भी बाप-बेटे का नाता नहीं रह गया है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अब बड़े और छोटे भाई का संबंध रह गया है। जो दो कदम आगे है, और वह जो दो कदम आगे है उसे दो कदम आगे रहने के लिए निरंतर श्रम करना पड़ेगा। सिर्फ उम्र से
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