Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 34
________________ भारत का भविष्य सूती कपड़े की हमारे दिमाग को परेशान किए हुए है। अब सौ-सौ पचास-पचास जोड़ी कपड़े घर में रखने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। लेकिन फिर भी एक बड़ा सूटकेस लेकर हमको सफर करनी पड़ती है। हमारी पुरानी आदतें पीछा नहीं छोड़तीं। नया ज्ञान आ जाता है तब भी हम पुरानी आदतों से ही जीए चले जाते हैं। नये संकट की सबसे बड़ी जो खूबी है वह यह है कि नये ज्ञान का संकट है और पुराना आदमी इसके साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा। आदमी पुराना पड़ गया है और ज्ञान बहुत नया है । यह ज्ञान इतना नया है कि इसे समझ लेना थोड़ा जरूरी है। जीसस के मरने के बाद साढ़े अठारह सौ वर्षों में दुनिया में जितना ज्ञान पैदा हुआ था, उतना ज्ञान पिछले डेढ़ सौ वर्षों में पैदा हुआ है। और जितना पिछले डेढ़ सौ वर्षों में ज्ञान पैदा हुआ है, उतना ज्ञान पिछले पंद्रह वर्षों में पैदा हुआ है। और जितना ज्ञान पिछले पंद्रह वर्षों में पैदा हुआ है, उतना पिछले पांच वर्षों में पैदा हुआ है। अब दुनिया जब पहले साढ़े अठारह सौ वर्ष में जितना ज्ञान पैदा करती थी, उतना पांच वर्ष में पैदा कर रही है। यह भी ज्यादा दिन नहीं चलेगा, आने वाले दिनों में ढाई वर्ष में उतना ज्ञान पैदा हो जाएगा। असल में दुनिया को साढ़े अठारह सौ वर्ष में जितना ज्ञान मिलता था, अगर पांच वर्ष में मिल जाएगा तो नालेज एक्सप्लोजन हो जाएगा। ज्ञान बहुत आगे निकल जाएगा, आदमी बहुत पीछे छूट जाएगा। अठारह सौ साल में हम एडजेस्ट हो जाते थे उससे । अनेक पीढ़ियां बदल जाती थीं तब ज्ञान बदलता था। सच्चाई तो यह है कि एक आदमी की जिंदगी में करीब-करीब दुनिया में कुछ भी नहीं बदलता था । जैसी दुनिया थी वैसी होती थी। जैसा आदमी जन्म के वक्त दुनिया को पाता था, करीब-करीब वैसी की वैसी मरते वक्त दुनिया को छोड़ता था । इसलिए उसके लिए एडजेस्टमेंट का सवाल नहीं था, वह एडजेस्टेड ही पैदा होता था और मरता था। अब एक बार आदमी की जिंदगी में पच्चीस बार सब बदल जाता है। असल में हमें पुराना खयाल छोड़ देना चाहिए एक जन्म का। अब एक आदमी जिंदगी में पच्चीस बार जन्म ले रहा है। क्योंकि उसके आस-पास की दुनिया हर पांच-दस साल में बदल जाती है । उसको फिर से एडजेस्ट होना पड़ता है। इसलिए जो कौमें नये एडजेस्टमेंट नहीं खोज सकती हैं वे कौमें बहुत मुसीबत में पड़ जाती हैं। भारत के अधिकतम सवाल, भारत की अधिकतम समस्याएं भारत की पुरानी आदत की समस्याएं हैं। हम पुरानी आदत से मजबूर हैं। हम जिंदगी को फिर मानने की आदत लिए बैठे हैं। जब कि जिंदगी अब तालाब नहीं रह गई, नदी हो गई है। वह रोज बदली जा रही है। तालाब को अपने तट का परिचय होता है, सदा एक ही तट होता है । वह उसे जानता है भलीभांति। वे ही दरख्त होते हैं, वे ही पक्षी होते हैं, वे ही लोग स्नान करने आते हैं। नदी रोज तट बदल लेती है, रोज वृक्ष बदल जाते हैं, रोज पक्षी बदल जाते हैं, रोज स्नान करने वाले बदल जाते हैं। नदी को रोज नई दुनिया के साथ राजी होना पड़ता है। हिंदुस्तान अब तक एक तालाब था। वह पहली दफा एक नदी बना है । उसे बहुत मुसीबत हो रही है । और जब जिंदगी में एक बार नहीं पच्चीस बार सारा ज्ञान बदल जाता हो तो हम बहुत मुश्किल में पड़ जाते हैं। वह मुश्किल कई तरह की है। पहली मुश्किल तो यह है कि पुरानी दुनिया में पिता हमेशा बेटे से ज्यादा जानता था । नई दुनिया में जरूरी नहीं रह गया। लेकिन बाप की पुरानी अकड़ नहीं जाती। पुरानी दुनिया में बाप अनिवार्य रूप से ज्यादा जानता था। इसमें कोई शक की बात ही नहीं थी कभी, इसमें बेटा सवाल ही नहीं उठा सकता था । Page 34 of 197 http://www.oshoworld.com

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