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भारत का भविष्य
अधिक लोग दुनिया में यह भूल करते हैं। चाहे उनके लोगों की कोई भी व्यवस्था हो। हम सब अपने से पिछली पीढ़ी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और अपने से आने वाली पीढ़ी के साथ अच्छे व्यवहार की आशा रखते हैं। यह असंभावना है। असल में अगली पीढ़ी हमारे व्यवहार को देख कर ही सीखती है कि हम क्या कर रहे हैं। अगर हिंदुस्तान के आज के जवानों को अपनी पुरानी पीढ़ी से सेतु बनाने से असमर्थता है, तो वे ध्यान रखें, यह खाई उनके बच्चों और उनके बीच और भी बड़ी हो जाएगी। अभी तो हम भाषा ही नहीं समझ रहे हैं, फिर हम बोलचाल भी नहीं कर सकेंगे। अभी तो हम बोलते हैं कम से कम, भाषा समझ में नहीं आती। फिर हम बोलना भी बंद कर देंगे। क्योंकि बोलना भी फिजल है, बेकार है। बोलने का कोई मतलब न रह जाएगा। हिंदुस्तान में दोनों पीढ़ियों से मैं संबंधित हूं और बहुत हैरानी से देखता हूं कि वे दोनों एक-दूसरे को समझने में असमर्थ मालूम पड़ते हैं। कौन सी कठिनाई हैं? पहली कठिनाइयां तो यह है कि जवान आदमी कभी भी यह नहीं समझ पाता कि बूढ़ा रिजिड हो जाता है। यह स्वभाव है। वह ठहर जाता है, जम जाता है, फ्रोजन हो जाता है। उसने जिंदगी में जो भी जाना है वह धीरे-धीरे ठहर कर सख्त हो जाता है। और बूढ़े को बदलना बहुत असंभव है। असल में बूढ़े का मतलब ही यह है कि जो बदलने की सीमा के पार चला गया, जिसको अब नहीं बदला जा सकता। इसलिए बूढ़े को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई भी मार्ग नहीं होता। सुसंस्कृत कौम उसे कहा जाता है, जो इस सत्य को स्वीकार करके अपने बूढ़ों के प्रति उनकी इस असमर्थता को जान कर भी सदभाव रख पाती है वह सुसंस्कृत कौम है। सुसंस्कृति का एक ही अर्थ है कि हम स्थितियों को देख कर उनकी फैक्टिसिटी को, उनके तथ्यों को समझ कर वैसा जीने की कोशिश करें। लेकिन सारे बच्चे अपने मां-बाप के प्रति क्रोध से भरे हुए हैं। एंग्री जेनरेशन, हम कह रहे हैं, क्रोध से भरी हुई पीढ़ी है। सब बच्चे अपने मां-बाप के प्रति क्रोध से भरे हुए हैं। विद्यार्थी शिक्षक के प्रति क्रोध से भरे हुए हैं। छोटे भाई बड़े भाई के प्रति क्रोध से भरे हुए हैं। यह क्रोध बहुत असंगत है, अमानवीय है, इनह्यूमन है, असंस्कृत है, अनकल्चर्ड है। और यह क्रोध जवान आदमी के योग्य, शोभा के योग्य नहीं है। यह बताता है कि जवान आदमी नहीं समझ पा रहा कि बुढ़ापे की अपनी परेशानियां हैं, अपनी मजबूरियां हैं। अगर जवान को यह साफ दिखाई पड़ जाए तो बुढ़ापा दया योग्य मालूम पड़ेगा। और यह भी उसे खयाल रखना चाहिए कि वह भी रोज बूढ़ा होता जा रहा है। और कल इसी दया की अपेक्षा उसे दूसरी पीढ़ी से हो जाएगी। दूसरी बात खयाल रखनी जरूरी है कि जवान को ही हाथ बढ़ाना पड़ेगा। अभी उसके हाथ बढ़ने योग्य हैं, बड़े हो सकते हैं, अभी ठहर नहीं गए। और जवान को ही समझदारी दिखानी पड़ेगी, क्योंकि उसकी समझ लोचपूर्ण है, फ्लेक्जीबल है, अभी वह बदल सकती है और नई हो सकती है। और ध्यान रहे कि बूढ़े ने जो भी जाना है, बुढ़े ने जो भी जीया है, अतीत की पीढ़ी ने जो भी अनुभव किया है, वह अगर जवान उसे समझ ले तो निश्चित ही उसे उसके जिंदगी में रिचनेस और समृद्धि में बढ़ावा मिलेगा। अगर वह उसे नासमझी से तोड़ दे तो हो सकता है उसकी जिंदगी की जड़ें कट जाएं, वह अपरूटेड हो जाए और भविष्य में फूल आने असंभव हो जाएं। इसलिए पहली बात तो मैं यह कहना जानना चाहता हूं कि हिंदुस्तान के जवान को हिंदुस्तान की समस्याओं के संबंध में अपने ताकत और अपने ज्ञान का उपयोग करना है, लेकिन परानी पीढी की समझ, प्रज्ञा और विजडम
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