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मंगल-संदेश
जैन शासन मे साध्वियो की गौरवशाली परपरा रही है। भगवान महावीर के समय में साध्वियो की सख्या छत्तीस हजार थी। वर्तमान मे लगभग ग्यारह हजार साध्विया साधना कर रही हैं। भौतिकता-प्रधान युग मे इतनी बड़ी सख्या मे साध्वियो द्वारा किया जा रहा आध्यात्मिक अनुष्ठान अपने आप मे एक उपलब्धि है। साधना के तीन अग हैंदर्शन, ज्ञान और चारित्र। इन तीनो अगों की पुष्टि होने से ही आत्मोपलब्धि की दिशा मे गति सभव है।
वर्षों से मेरी आकाक्षा थी कि जैनशासन मे साध्वियो का कर्तृत्व उजागर हो। ज्ञान के क्षेत्र मे उनकी गति हो। जैन-साहित्य उनके अवदान से गरिमा-मण्डित हो। विगत दो-तीन दशको मे साध्वियो ने इस क्षेत्र में प्रस्थान किया है। उनकी गति भले ही मन्द हो, पर यह विकास का शुभ संकेत है।
डॉ साध्वी दिव्यप्रभाजी ने आचार्य मानतुग द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र को आधार बनाकर व्याख्यान दिए। भक्तामर स्तोत्र जैन-परपरा मे प्रसिद्ध तो है ही, इसके प्रति प्रगाढ़ आस्था है। श्रद्धा के साथ स्तोत्र का पाठ निश्चित रूप से श्रेयस्कर होता है। साध्वी द्वारा इस सदर्भ मे दिए गए व्याख्यान श्रद्धालुजनो की आस्था को पुष्ट आलम्बन देगे, ऐसा विश्वास
आचार्य तुलसी
जैन विश्व भारती, लाडनू ३४१ ३०६ (राजस्थान) १५ अक्टूबर १९९१