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आत्मा का परिचय १९ विवुधार्चितपादपीठ - विवुध का एक अर्थ देव है परन्तु विशेषार्थ है विशिष्ट
बहुजन अर्चित पादपीठ याने पूजित चरणासन वुद्ध्या विना अपि - वुद्धि विहीन होने पर भी, विगतत्रप
लज्जा रहित स्तोतु समुद्यतमति स्तुति करने के लिए तत्पर हुई है वुद्धि जिसकी ऐसा जलसस्थितम् जल मे अच्छी तरह से पड़े हुए इन्दुविम्वम्
चन्द्र के प्रतिविम्ब को वालं विहाय
वालक को छोड़कर अन्य क जन दूसरा कौन मनुष्य सहसा
अचानक ग्रहीतुम् - पकड़ने के लिए इच्छति
इच्छा करता है, चाहता है। ___ जो सामने आता है वह सम्बोधित होता है। भक्त आज पहली वार परमात्मा से मिल रहा है। "विवुधार्चितपादपीठ" जिनका पाद-पीठ विवुधो से अर्चित है, पूजित है। पादपीठ का मतलब होता ह-चरणासन। जिस पर पैर रखकर परमात्मा सिहासन पर आरूढ़ होते है उसको कहा जाता है पादपीठ। अर्चित का मतलब है पूजित। चरणासन पूजित इसलिये होता है कि नमन चरणो मे ही किया जाता है। क्योंकि चरणो से ही शुभ Vibrauon तरगित होते रहते हैं। इसीलिए परमात्मा के चरण सदैव पूजनीय होते हैं। चरण आसन पर रखे जाते हैं, अत चरणासन भी पूजित होता है। सर्व जीवो से अर्चित ऐसा न कहकर विदुधो से अर्चित ऐसा क्यो कहा? सामान्यत विबुध का अर्थ देव किया जाता है। परन्तु "भक्तामर स्तोत्र के वास्तविक अर्थ मे विबुध का अर्थ देव नहीं होता है। विवुध का अय होता है विशिष्ट दुधजन। ___ अब मैं आपसे पूछती हूँ विदुध आप है या नहीं? आप अपने को क्या मानते हैं विवुध या अवुध ? मान लीजिए, आप अपने को विवुध मानते हैं और आप समवसरण में पहुँच जाते है तो क्या आप परमात्मा के चरणो की पूजा नहीं करेंगे? उनको नमन नहीं करेंगे? अगा ही करेंगे? यदि करोगे तो विवुध का अर्थ सिर्फ देव क्यों लेते हैं? क्या उनको ही अधिकार है परमात्मा के पादपीठ के अर्चन करने का ? हमें कोई अधिकार नहीं है। हमें सम्पूर्ण अधिकार है-परमात्मा के पादपीठ के अर्चन, पूजन का और नमन का। उसका पूजा कैसा होता है ? भावपूर्दक नमस्कार परमात्मा का पूजन है। इस प्रकार विदुध जनों से अर्पित है पादपीठ जिलश ऐसे कौन है ? परमात्मा देवाधिदेव। "भक्तामर स्तोत्र" की
औक पतिया ने लोक सम्बोधर मिलेगे। प्रत्येक सम्बोधन एक विशिष्ट तत्त्व का अमानवाते हैं। मम्बोधनों में कुछ न कुछ रहस्य है, कुछ न कुछ परमार्य है।