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मुक्ति - वोध ३९ आक्रान्तलोकमलिनीलमशेपमाशु,
सूर्याशुभिन्नमिव शावरमन्धकारम्॥७॥ त्वत्मातवन - आपके स्तयन में नगरपाजाम - दहधारी जीवो का-प्राणियो का भवन्ततिमप्रियम् - परम्परागत भयभवान्तरां से वघा हुआ पापम
- पापकर्म साझान्नलाम् - समात लोक में फैले हुए-ससार भर में व्याप्त अलिनालम
- प्रमर के समान काला मूर्या मित्रम - मूर्य की किरणों से छिन्न-भित्र (लुन) किया हुआ शावरम
- गतिविपयक-रात्रि में होने वाले अपाम
- अन्धकार के
- ममान अरोपम
- मद का मद सणात
-- क्षण भर में-शीघ्रातिशीघ्र सयम
-- दिशाशको -पहाजाना ह।