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स्वरूप १०५ परमात्मा आप अव्यय हो। अव्यय का मतलब क्या होता है ? व्यय का मतलब समझेगे तो अव्यय समझ मे आयेगा। व्यय का मतलब होता है खडन, व्यय का मतलव होता है विनाश, व्यय का अर्थ होता है टुकड़ा, व्यय का मतलब होता है नाश और व्यय का मतलब होता है अनित्यता, अशाश्वतता। इन सबसे आप परे हो इसीलिए आप अव्यय हो। आप शाश्वत हो, नित्य हो, ध्रुव हो, अक्षय हो, अविनाशी हो, पूर्ण आत्मस्वरूप को आप उपलब्ध कर चुके हो। आपकी सर्वोपरि विशेषता है कि आप अव्यय की स्थिति को प्राप्त कर चुके हो और
आप अव्यय की स्थिति को प्राप्त करा सकते हो। ७ आप विभु हो। विभु का अर्थ क्या होता है ? विभु याने व्यापक। आप अपने
अनत ज्ञान और दर्शन के द्वारा इस सृष्टि लोक मे व्याप्त हो। इस व्यापक सृष्टि मे रहनेवाला कोई भी जीव आपके ज्ञान और दर्शन का आराधक होगा उसके अन्दर भी आप ज्ञान और दर्शन प्रकट करनेवाले हो। इसीलिये आप व्यापक हो। आप ज्ञान-दर्शन से भी व्यापक हो और प्रत्येक भक्त आत्मा के ज्ञान दर्शन को उजागर करने के कारण अन्त करण मे वसने के कारण आप विभु हो। आप अचिन्त्य हो। हम सभी मिलकर परमात्मा का चिन्तन करेंगे तो भी हम उनका चिन्तन नहीं कर सकते हैं, ऐसे वे अचिन्त्य है। आप अचिन्त्य तो हैं, पर हमारी आत्मा भी अचिन्त्य, अगम्य है इसे आप हम मे प्रकट कर देते हो ऐसा
हमारा आपका सबध है। ९ आगे कहा है आप असख्य हैं। सख्यातीत हैं। आपके जिस किसी भी गण को
जिस किसी भी भक्त ने जीवन मे उतार लिया है उसने आपका स्वरूप प्राप्त कर
लिया। गुणो के द्वारा अनेक हृदयो मे प्रतिष्ठित होने से आप असख्य हैं। १० आगे कहते हैं आप आद्य हो। आद्य का मतलब क्या होता है प्रथम। यह
आदिनाथ परमात्मा की स्तुति तो है ही। उनका तो मोक्ष हो चुका। अब ये हमारे आद्य कैसे हो सकते हैं ? ससार का एक जीव जव मोक्ष मे जाता है तब एक जीव अव्यवहार राशि से निकलकर व्यवहार राशि मे आता है तब से हे परमात्मा। मेरे आत्मविकास की आदि के प्रथम मार्गदर्शक आप हो। साथ ही हे परमात्मा। मेरी भक्ति, प्रीति और अनन्य वात्सल्य के आप ही एक मात्र स्वामी हो। मेरी
समस्त आराधना मे, अनुष्ठान मे प्रथम आप हो। ११ उसके दाद कहते हैं आप ब्रह्मा हो। ब्रह्मा उनको कहते हैं जिसने इस सृष्टि का
विधान बनाया हो। परमात्मा आप मेरे मोक्ष मार्ग के विधाता हैं। इसीलिए आप मेरे ब्रह्मा हो। आप ईश्वर हो। ईश्वर किसको कहते हैं जो ऐश्वर्य से युक्त हो। हे परमात्मन् । आप अनत आत्मिक ऐश्चर्य के चिदानद वीतराग म्वरूप ऐश्वर्य को प्राप्त कर चुके हो और अन्यो को प्राप्त कराने वाले हो।
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