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भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
विशाल भक्त समुदाय के साथ आचार्यश्री स्वस्थान लोटते हैं। यहां राजा लहियो (प्रतिलिपिकारी) से सारी ताड़पत्रिया इकट्ठी कर स्वस्थान लोटते हैं। गुप्तमंत्री के साथ कक्ष में प्रवेश कर दरवाजा बंद करते हैं। मंत्री से बेड़ियां पहनकर फिर सामने स्तोत्र रखकर बोलते है
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भक्तामर प्रणतमालि-मणिप्रभाणामुद्यातक दलित- पापतमो-वितानम् । सम्यक्प्रणम्य जिनपादयुग युगादावालम्वन भवजले पतता जनानाम् ॥ य सस्तुत सकलवाङ् मयतत्त्ववोधादुद्भुत-बुद्धि-पटुभि सुरलोकनाथे । स्तोत्रर्जगत्त्रितयचित्त- हररुदारे,
स्तोष्ये किलाहमपि त प्रथम जिनेन्द्रम् ॥
पने पहले भी कहा था कि उपासना के तीन प्रकार माने जाते हैं
१ प्रतिस्पर्धा
२ पुनरावृत्ति ३ भक्ति
Competition Repetition समर्पण (Dedication)
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