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परिशिष्ट १५५ अब पिच्चुटरी ग्रन्थि से स्रावित दूसरे प्रवाह का प्रभाव भी देखे। महापुरुष, जिनमे निरतर सद्भावनाये सप्रेषित (Flow) होती रहती हैं और उनकी पिच्चुटरी ग्रन्थि से A C T H नामक हार्मोन्स स्रावित होता है। ये नाव अन्य में उद्भूत S T H नामक हार्मोन्स को प्रभाव रहित कर देता है। परिणामत महापुरुषो की ऊर्जा को Absorbकरने से व्यक्ति रोग रहित भी होता है और दूषित भावनाओ से भी मुक्ति पाता है। इसी को भारतीय भाषा में आशीर्वाद, वरदान, कृपा या अनुग्रह का रूप माना जाता है। यह सृष्टि परिवर्तन का एक प्राकृतिक नियम बन जाता है। भारत की यह धरोहर सपूर्ण विश्व मे एक अनन्यता का रूप बनी हुई है।
भक्तामर स्तोत्र मे भक्ति द्वारा ऊर्जान्वित साधक की पिच्चूटरी ग्रन्थि से ACTH नामक हार्मोन्स निकलना शुरू होता है, परिणामत उसकी प्राणऊर्जा मे अल्फा तरगे आदोलित हो जाती हैं और वह समस्त मानसिक पीड़ाओ से मुक्त हो जाता है। स्वय आनद से भर जाता है और उसके पास जो भी आता है, प्रसन्न हो जाता है। मै समझती हूँ इससे बड़ी तात्कालिक उपलब्धि और क्या हो सकती है ?
प्रश्न ३-दिव्यदृष्टि विद्या (Clairvoyance), मानसिक सक्रमण (Telepathy), आत्मवाद (Spiritualism) के बारे में विस्तार से समझना चाहता हूँ। __उत्तर-दिव्यदृष्टि, मानसिक सक्रमण, आत्मवाद ये सब चित्त की निर्मल प्राणधारा से उत्थित प्राणवायु की उत्तरोत्तर उच्च से उच्चतर या उच्चतम स्पदन प्रणालियाँ हैं। प्रयोगकर्ता मनोवृत्ति द्वारा अपनी चुवकीय मानसिक शक्ति को तीव्र गति से प्रयोग में लाता है। यह कई बार तो अनुभूतिपरक रहता है और कई बार प्रयोगकर्ता स्वय ही अपनी इस विशिष्ट शक्ति से अनभिज्ञ रहता है। योगीपुरुषों मे ये शक्तियाँ व्यापक रूप से प्रयुक्त होती रही हैं। वर्तमान युग मे जो प्रयोग प्रसिद्ध हैं वे इन विभिन्न सिद्धान्तो के नाम से प्रचलित होते रहे हैं।
१ दिव्यदृष्टि (Clairvoyance)-प्रयोगकर्ता अपनी विशिष्ट सम्मोहन शक्ति से सपन्न होकर किसी भी पात्र को सम्मोहित करने की चेष्टा करता हुआ उसे निर्देश देता है "तुम दिव्यदृष्टि को प्राप्त कर चुके हो, तुम प्रत्येक वस्तु का साक्षात्कार कर सकते हो, तुम्हारी चैतन्य शक्ति समस्त ब्रह्माण्ड में व्यापक हो रही है इत्यादि सम्मोहक वचनों का पात्र पर असर होता है और वह प्रयोगकर्ता के निर्देशन के अनुसार दृष्टिसापेक्ष हो जाता है।
हैदराबाद कुसुम इण्डस्ट्रीज वाले श्रीमान् रतिलाल मेहता दिव्यदृष्टि का अपना एक अनुभूत प्रसग बताते हुए कहते थे कि तिब्बत के लामा लोग साधन विशेष से मस्तिष्क के विशेष अग को उत्तेजित कर दूसरे के प्राणमय कोष Ethernc body को देखने की दिव्यदृष्टि प्राप्त करते हैं। उनके अनुसार इसमे विशेष दो जड़ी-बूटियो का प्रयोग होता । - एक तो दातेदार औजार जैसी और दूसरी शलाका जैसी। इसमे प्रारभ में पहली