Book Title: Bhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 179
________________ १६२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि महाराज श्री के निकट खड़ा हो गया। उसी वक्त महाराज श्री ने इस स्तोत्र के ३९वे पद का पाठ शुरू किया। कुछ ही मिनिटो मे वह शेर सर्कस के शेर की तरह यत्रवत् वापस लौट गया। एक बार हम लोग केकडी से जैतारण जा रहे थे। एक रास्ता रोड-रोड से ब्यावर होते हुए था और दूसरा रास्ता कच्चा था जो बीच-बीच मे जगलो और खेतो से होता हुआ जैतारण पहुँचता था। वह थोड़ा कम होने से हमने उस पर चलना तय किया। चलते हुए हम खरवा से गोला पहुंचे। गोला से आहार-पानी करके हमे आगे चलना था। आहार-पानी की व्यवस्था वहॉ कम होने से रात्रि विश्राम वहाँ करने का इरादा नही था। गोला से हमने प्रस्थान किया तब प्रारभ के ३-४ कि मी तक तो हमे कोई न कोई मिलता रहा। बाद मे पगडडी से होकर रास्ता आगे मिलेगा ऐसा वहा के लोगो के कहने से हमने पगडडी पर चलना शुरू किया। परन्तु, आगे चलकर पगडडी पूर्ण हो गई। शाम होने मे कुछ ही समय बाकी था। वापस लौट नही सकते थे। खेत और कूए की परिसीमाएं समाप्त हो चुकी थी। अपरिचित और अनभिज्ञ हमने वहॉ वटवृक्ष के नीचे कुछ समय सोचने मे ही गुजारा। जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तब हमने भक्तामर स्तोत्र का पाठ शुरू किया। इसी वक्त हमारी आवाज को सुनकर एक आदिवासी महिला वहाँ आयी और कहने लगी तुम शहर के आदमी ऐसे जगलो मे क्यो आये? आगे कहाँ जाना चाहते हो? यहाँ तो जगली जानवरो का बहुत उपद्रव है। उसके यह कहते ही कहते एक भालू सामने आकर खड़ा हो गया। वह महिला घबराकर कहने लगी, मै भी अपना साधन छोडकर आयी हूँ अब क्या होगा?' हमने उसकी घबराहट को दूर करते हुए उसे चुप रहने का संकेत दिया और हमने नमोकार मन्त्र और स्तोत्र पाठ शुरू किया। भालू चुपचाप लौट गया। आदिवासी महिला आश्चर्य और कौतूहल के साथ देखती रह गई और शहर तक हमे रास्ता बताती हुई चलती रही। रास्ते में हमने उसे जानवरो को नही मारने के बारे मे समझाया। प्रेम से परमात्मा का स्मरण करो। ये प्राणी भी प्रेम से वश मे होते हैं। अभय देने से अभय मिलता है। बातचीत के दौरान चलते हुए हम लोग सुमेर नाम के गाँव मे पहुँचे। छोटे से कस्बे में रात गुजारना हमने उचित समझा। रात मे वह आदिवासी महिला कई आदिवासी लोगो के साथ आयी और हमारा अपनी भाषा मे टूटा-फूटा परिचय देने लगी। उन सबको समझाने पर उन्होने जानवरो को नही मारने की प्रतिज्ञा की। ई.सन् १९७१ की यह घटना है। हम आकोला (महाराष्ट्र) से इदौर (मध्यप्रदेश) की ओर विहार करते हुए जा रहे थे। खडाला से आगे करीब ४० कि मी पर जगल आता है, वहाँ हमने पहाड़ की एक चोटी पर बने हुए मकान में विश्राम लिया। वहाँ के लोगो ने हमे इस बात की चेतावनी अवश्य दी थी कि पास के तालाब में पानी पीने के लिए आने वाले शेर इस रास्ते से गुजरते हैं, इसलिए हम कोई भी इस चोटी पर कभी नही रहते हैं। यदि किसी खास मौके पर रहने की आवश्यकता होने पर हम अग्नि का प्रबध रखते हैं। हमने उसे कहा कि अब समय भी नहीं है कि हम स्थानातर करें, अत अपने इष्ट स्मरण से

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