Book Title: Bhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 181
________________ परिशिष्ट १६५ ठाणाग सूत्र की प्रति खोलकर वह पद वृत्तिसहित पढ़ा रहा था, वह पद जिसकी मै खोज कर रही थी। उसकी प्रसन्नता मे मेरी नीद खुल गई। प्रात काल की आराधना कर तुरत ही मै अवसर पाकर जैन साहित्य विकास मडल पहुँची। श्री प्रताप भाई मेहता के सहयोग से भडार जो प्रतिदिन दश बजे खुलता है उसे ७ बजे ही खुलवाया गया। स्वप्न मे देखी हुई वे पाक्तियाँ झिलमिलाती हुई मेरे जीवन को छू गई। मेरे जीवन की प्रगति का विकास वही से प्रारभ हुआ। जीवन की सपूर्ण सफलता का यह शुभारभ था। यह अभूतपूर्व प्रेरणा मेरे जीवन का सयोजन बन गई। आज भी यही ३६वा पद मेरे सपूर्ण जीवन का आधार है। भक्तामर स्तोत्र के ऊपर पायी हुई सारयुक्त उपलब्धियो का मूलाधार यह पद है। यह पद मेरे जीवन की निधि है, संनिधि है और उपलब्धि है। किसी भी भौतिक वस्तुओ की उपलब्धि के लिये आराधना कर आराध्य से मॉगने के विचारो के मै खिलाफ हूँ। क्योंकि, बाह्य प्रसगो की अपेक्षा भी भक्तामर स्तोत्र की सर्वोपरि विशिष्टता तत्काल कषाय उपशमन करने की है। इससे बडा चमत्कार ओर क्या हो सकता है ? बिना मागे ही स्तोत्र पाठ के द्वारा मैने कई बार अभीष्ट सफलता पाई है। कई बार साप्रदायिक वातावरण के कारण सघो मे जब आपसी टकराव होते हैं तब दोनो पक्षो को शान्ति और समाधि पदान कर मानसिक अशान्ति दूर करने मे भक्तामर स्तोत्र बडा सफल रहा है। ऐसे तो कई प्रसग आये हैं लेकिन एक नवीन प्रसग भी सुन लीजिए। ____ जोधपुर महामदिर मे दो विरोधी पक्ष हमे महामदिर के आगमन का निमत्रण दे गये। स्वीकृति देकर हमने वहाँ पहुचना अनिवार्य समझा। परन्तु, एक पक्ष को बाद में असतोष हुआ और उन्होने हमारे वहाँ नही पहुँचने के अनेक प्रयास किये। सघ की ऐक्यता को बनाने और साप्रदायिक दूषणो को हटाने के उद्देश्य से हमने विरोधी वातावरण मे भी स्थानक मे प्रवेश किया। हम सबने और सघ के कई लोगो ने सघ की शान्ति हेतु उस दिन आयंबिल किये। दोपहर को एक घटा शान्ति जाप और एक घटा भक्तामर जाप करवाया। विरोधी शात तो हो गये लेकिन प्रशात नहीं हो पाये। अत उसी दिन से प्रतिदिन जाप चालू रखे। धीरे-धीरे सारे विरोध और अवरोध समाप्त हो गये। आज भी वहाँ प्रतिदिम स्तोत्र पाठ चालू है। एक बार एक सुनसान पथ पर सामने से आता हुआ एक ट्रक हमारे व्हिा नार रुक गया। ट्रक मे से दो-तीन पहलवान जैसे आदमी नीचे उतरे। उनी नुन्ना से भरी निगाहें, उनकी भावनाओ को छिपा नही सकीं। हमने तुरत ही उ दक माण और नमस्कार महामन्त्र के जाप शुरू किये। आपको व्या ताएका हुनको पहलवान न तो कुछ बोल पाये और न कुछ कर गद ह न उन रास्ता काटकर आगे निकल गये। जिसके अक्षर-अक्षर मे रहस्य भरे हुए है जितनी महानताएँ अनुभव में ला उतई

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