Book Title: Bhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 175
________________ परिशिष्ट १५७ की अपेक्षा विचार तरगो की गति सात गुना अधिक है। एक क्षण मे अनुमानत ये पृथ्वी की ४0 बार परिक्रमा लगाती हैं। इस कारण मानसिक सक्रमण मे व्यक्ति आपस मे विचार सप्रेक्षण करने में सफल रहता है। दोनो अभियोक्ता अपने मनरूपी Acnal द्वारा विद्युत शक्ति की सहायता से अथवा अपनी योगजन्य प्राणशक्ति से अपनी विचार नरगो को विद्युत् तरगों में परिवर्तित कर देते हैं। ये विद्युत् तरगे Space path (आकाश मार्ग) द्वारा निर्धारित जगह पहुँचकर पुन उसी क्रिया द्वारा विचार तरगो मे परिवर्तित होकर सामने वाले को सदेश देकर और लेकर पुन विद्युत् तरगो मे रूपातरित होकर लौट आती हैं। ३ आत्मवाद (Spiritualism) इस प्रयोग मे प्लानचेट का उपयोग किया जाता है। इस पद्धति में पान के आकार के लकडी के एक पतले तख्ते पर दो तरफ धातु के दो पहिये लगाये जाते हैं। किनारे पर पेन्सिल लगाई जाती है, इसे प्लानचेट कहते हैं। ___ इस पर अगुली रखने से अगुली रखने वाले व्यक्ति के Magnetic power याने चुबकीय शक्ति से वह घूमने लगती है। कभी-कभी स्टील की कटोरी, छोटी टेबल पर या प्रायमस (स्टोव) पर भी अगुलियाँ रखकर यह प्रयोग किया जाता है। चुबकीय अनुसधान के अनुसार प्रयोगकर्ता के चित्त की एकाग्रता एव चित्तशुद्धि के कारण प्रश्नो के योग्य उत्तर मिलते रहते हैं। प्राचीन विचारधारा के अनुसार प्रयोगकर्ता द्वारा मृत आत्माओ का इसमे आव्हान होता है और प्रश्नो के उत्तर बहुधा उनके ही द्वारा दिये जाने की व्यापक मान्यता भी वह प्रचलित है। इस विचारधारा मे मृत आत्मा मृत्यु के समय अपने किसी दूरस्थ सबन्धी से कोई बात नहीं कह पाया हो तो वह अपनी प्रबल विचार शक्ति द्वारा ऐसे कुछ प्रयोगो के माध्यम से अपना काम कर सकते हैं। परन्तु, वस्तुत ऐसा नही है। Personal Magnetism द्वारा उस प्लानचेट विधुत् साधन पर प्रयोगकर्ता अपनी विचारधारा आवर्तित करता है और अत मे वही आवर्तित विचारधाराए, ईथर की सहायता से उत्तर बनकर लौट आती हैं। प्रश्न ४-भक्तामर स्तोत्र के सम्बन्ध में कई मत्र, यंत्र, ऋद्धि आदि प्रसिद्ध हैं । उनके बारे में आपका क्या अभिप्राय है? उत्तर-भक्तामर स्तोत्र स्वय एक मत्र है, क्योंकि यह मन का समस्त प्रतिकूल किवा विघटन की स्थिति मे त्राण याने रक्षा करता है। मन का जो रक्षण कर सकता है, वही तो मत्र कहलाता है। व्यक्ति अपने जीवन के सभी प्रयत्नों में पूर्ण सफलता की इच्छा रखता है। हमारे यल का, प्रयल का रक्षण करता है वह यत्र कहलाता है। भक्तामर स्तोत्र प्रत्येक प्रतिकूल या विपरीत स्थिति में भी एक सफल योजना के साथ साधक का रक्षण कर उसे अनुकूलता का आनद प्रदान करता है, अत यदि आप मेरा अभिप्राय जानना चाहते हैं मैं कहूँगी कि इस स्तोत्र का प्रत्येक पद अपने आप में एक योजनामय यत्र है।

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