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समर्पण १४९ सम्यक्प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बन भवजले पतता जनानाम् ॥
य सस्तुत सकलवाङ्-मयतत्त्ववोधादुद्भूत-बुद्धि-पटुभि सुरलोकनाथै । स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्त-हरैरुदारै ,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथम जिनेन्द्रम्॥ बोलो परम स्वरूप को प्राप्तआदिनाथ भगवान की जय हमारे परमार्थ के परम प्रेरणा स्वरूप सद्गुरुदेव मुनिश्री मानतुगाचार्य की जय स्वय प्रभावितजिन शासन की जय!
ॐ शांति शांति शांति---