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वैभव ११९ गन्धोदबिन्दु-शुभमन्दमरुत्प्रपाता,
दिव्या दिव पतति ते वचसा ततिर्वा ॥३३॥ गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमरुत्पपाता - सुगंधित जल की बूंदो से युक्त एव सुखद
मन्द-मन्द पवन के झोको के साथ गिरनेवाली उद्धा
- ऊर्ध्वमुखी-ऊपर को मुख है जिसका ऐसी दिव्या
- देवलोकोत्पन्न, पारमार्थिकी मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजात - मदार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात तथा सन्तानकादिकुसुमोत्कर वृष्टि सन्तानक आदि वृक्षो के फूलो की वर्षा
दिव
- आकाश से पतति
- गिरती है ~ अथवा/मानो
- आपके वचसां
- वचनो की तति
- पंक्ति हो पतति
- फैलती है हे परमात्मा। मानो आपके वचनो की साक्षात् पंक्ति रूप दिव्य फूलो की निरन्तर वर्षा होती है। यह वर्षा शीतल-मन्द-सुगध समीर के साथ महक फैलाती है।
भक्त द्वारा श्रद्धा के फूल परमात्मा के चरणो मे चढ़ाने से उसकी आत्मा का आवरण हटता है और तुरन्त ही ऊर्ध्वलोक की विशेष वृक्षावली से सम्बन्धित वे फूल आत्मलोक के वास्तविक फूल बनकर वास्तविकता प्रकट करते हैं, आत्मिक गुण बढ़ाते हैं।
जैसे-उद्धा शब्द भी बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इसका अर्थ है ऊर्ध्वमुखी। ऊर्ध्वमुखी याने समवसरण मे जो फूल बरसते हैं उनके डठल नीचे (अधोमुखी) रहते हैं। अत्यत परमार्थ से भरा यह उद्धा शब्द भव्य जीवो का प्रतीक है। समवसरण मे आनेवाले भक्तात्मा फूलवत् है। जो भी आता है ऊर्ध्वगामी-स्थिति को पा जाता है। पतित भी पावन होता है। इस प्रकार प्रत्येक चेतन आत्मा के विकास का अभियान यह "उद्धा" शब्द है।
हे परमात्मा इन विशेष पुष्यों को प्राप्त करनेवाला सचमुच भाग्यशाली है। परमात्मा तू देवाधिदेव तरु है। तेरे वाणी रूप पुष्पो के साथ इन दैवीय फूलों की तुलना कर मुझ में पारमार्थिक फूलो का प्रादुर्भाव हो जाता है। जैसेदैवीय फूल
वाणी पुष्प १ सुदर-मनोहर
माधुर्य प्रसाद गुण युक्त