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प्रतीक १४१ ३ दावाग्नि
नेसर्गिक ४ सर्प
तियच सम्बन्धी ५ युद्ध
मनुष्य सम्बन्धी ६ युद्ध ७ वाडवाग्नि
नर्गिक ८ जलोदर
कर्मकृत ९ वधन
कमकृत इस विभाजन से यहा तिर्यचकृत तीत, Tणकृत दो, काकृत दो आर निसर्गकृत दो-कुल नो उपसर्ग हैं जो अन्य अनेक उपसर्गों का प्रतिनिधित्व कर अणे मे सहायभूत कर लेते हैं।
परमात्मा के शरण ग्रहण मे हा उपमर्गों का महज शमा हो जाता है। शरण-ग्रहण समर्पण-प्रधान होता है अत अव ममपण विषय के द्वारा अन्तिम श्लोक को आचार्यश्री के अनुग्रह से अनावृत करने का प्रयास करंग।