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वैभव १२१ प्रोद्यदिवाकर-निरन्तर-भूरि-सख्या
दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम्॥३४॥ प्रोद्यदिवाकरनिरन्तरभूरिसख्या - प्रकृष्ट रूप से एक साथ ही पास-पास उदय
___होने वाले अनेक सूर्यों के समान ते विभो
- हे प्रभो। तुम्हारे शुम्भप्रभावलयभूरिविभा - नितान्त शोभनीक प्रभा-मण्डल (भा-कान्ति,
उसका मण्डल-गोलाकार-वह भामण्डल)
की अतिशय जगमगाती हुई ज्योति लोकत्रयद्युतिमताम् - तीनो लोको के सभी दीप्तिमान पदार्थों की द्युतिम्
- द्युति को अक्षिपन्ती
- पराजित/निरस्त करती हुई। सोमसौम्या अपि - चन्द्रमा सदृश सौम्य-शीतल होने पर भी दीप्त्या
- अपनी कान्ति से निशाम् अपि
- रात्रि को भी जयति
- जीतती है। • अनेक सूर्यों के समान तेजस्वी, फिर भी उष्णता, प्रचण्डता और आतप से सर्वथा रहित ऐसे भामण्डल की प्रभा का निखार इसमे प्रस्तुत किया है। भामण्डल के लिए यहाँ प्रभावलय शब्द का प्रयोग किया है।
यह भामडल किसी धातु विशेष से निर्मित नही होता है। यह पौद्गलिक तैजस् शरीर का स्वरूप है। सूक्ष्मतम तैजस् वर्गणाओ से यह निर्मित होता है।
वस्तुत यह व्यक्ति की समस्त भावधारा की समायोजना का एक रूप है परतु इसे विशेष और सामान्य तौर पर दो भागो मे विभाजित किया जाता है।
OccultScienceके अनुसार भा-मण्डल [Halo] यह महान व्यक्तियो के सिर के पीछे गोलाकार में पीले रंग के चक्र जैसा होता है। तीर्थंकरो का प्रभावलय उनकी परम
औदारिक अनुपम देह से निकलती हुई कैवल्यरश्मियो का वर्तुलाकार मडल है। उनकी दिव्यप्रभा के आगे कोटि कोटि सूर्यों का प्रभाव भी हतप्रभ हो जाता है। सामान्य व्यक्तियो मे यह इतना तेजस्वी और पीले रग मे चक्राकार रूप नही होता है। सामान्य व्यक्तियो के पीछे पायी जानेवाली भावधारा को आभा-मडल [Aura) कहते हैं। यह सबल और निर्बल दो तरह का होता है। जिनका चरित्र अच्छा हो, जिनका आत्मबल अधिक हो उनका Aura (आभामडल) सबल और जिसकी नैतिक भावधारा हीन हो उसका आभामडल {Aura] निर्बल होता है। यह व्यक्ति की भावधारा का प्रतीक है।